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ग्वालियर

मृत्यु का आभास होते ही छोड़ा भोजन, सात दिन बाद ले ली समाधी

मृत्यु का आभास होते ही इस मुनी ने भोजन त्याग दिया। पूरे एक हफ्ता बिन कुछ खाये-पिये व्यतीत किया। लोगों का हुजुम उनके दर्शन करने उमड़ पड़ा।

ग्वालियरNov 30, 2016 / 06:17 pm

Gaurav Sen

jain muni vishbaruchi

jain muni vishbaruchi

ग्वालियर। मृत्यु का आभास होते ही इस मुनी ने भोजन त्याग दिया। पूरे एक हफ्ता बिन कुछ खाये-पिये व्यतीत किया। लोगों का हुजुम उनके दर्शन करने उमड़ पड़ा। शहर का पूरा जैन समाज मंदिर में 78 साल के इस जैन मुनि को आखिरी दर्शन करने कतारों में खड़ा नजर आया।


78 वर्षीय जैन मुनि विश्वअरुचि सागर जैन मुनि विश्वअरुचि सागर का भिंड में सोमवार को अंतिम संस्कार किया गया। मुनि विश्वअरुचि को एक हफ्ते अपनी मौत का अहसास होने लगा था।एक हफ्ते पहले अपनी जिंदगी के बारे में अहसास होने लगा था और इसी कारण उन्होंने 22 नवंबर के भोजन छोड़कर व्रत (संलेखना) ले लिया। इसी कारण उन्होंने 22 नवंबर से व्रत धारण कर लिया, यानि भोजन लेना बंद कर दिया। जैन समाज में इसे संलेखना कहते हैं।


सोमवार को मुनि विश्वअरुचि हमेशा के लिए समाधि में चले गए। समाधि के बाद उनकी अंतिम यात्रा पूरे शहर में निकली और अंतिम संस्कार के समय जैन साध्वी और मुनियों ने उनकी चिता की परिक्रमा लगाकर अंतिम विदाई दी। अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान से किया गया। उनकी चिता को सजाया और पहले जैन मुनियों ने चिता की परिक्रमा लगाई और जैन साध्वी चिता के चारों ओर घूमीं और मुनि को अंतिम विदाई दी।


मुनि बनने से पहले थे नेमीचंद
मुनि विश्वअरुचि सांसरिक जीवन त्यागने से पहले नेमीचंद जैन थे और भिंड के ही रौन के निवासी थे। पांचवी तक पढ़े नेमीचंद जैन ने आचार्य विवेक सागर से दीक्षा ली थी।इसके बाद वे विश्वअरुचि सागर के नाम से जाने गए और 78 साल की उम्र में उनका देहांत हुआ।

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