scriptMadhavi Raje Scindia : पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ राजनीति में सक्रिय रहती थीं माधवी राजे सिंधिया | Madhvi Raje Scindia Death memory remains Madhvi Raje was active in politics along with family responsibilities | Patrika News
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Madhavi Raje Scindia : पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ राजनीति में सक्रिय रहती थीं माधवी राजे सिंधिया

Madhviraje Scindia: नेपाल राजघराने की बेटी किरणराज लक्ष्मीदेवी सिंधिया परिवार में आकर माधवीराजे सिंधिया कहलाईं और पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ राजनीति में भी सक्रिय रहीं…

ग्वालियरMay 16, 2024 / 12:18 pm

Sanjana Kumar

Death

माधवी राजे सिंधिया स्मृति शेष.



नेपाल राजघराने की बेटी किरणराज लक्ष्मीदेवी सिंधिया परिवार में आकर माधवी राजे सिंधिया हो गईं। ग्वालियर के सिंधिया राजपरिवार के राजकुमार माधवराव सिंधिया (Madhavrao Scindia) से उनका विवाह हुआ तब मराठी परंपरा के अनुसार उनका नाम बदल गया और उन्हें नया नाम मिला माधवी राजे सिंधिया (Madhavi Raje Scindia)। उनका नाम तो बदल गया लेकिन जिस सियासत को उन्होंने बचपन से देखा उसकी समझ उनमें हमेशा बनी रही। जब वे सिंधिया राजघराने की बहू बनीं तो उस सियासी समझ का यहां भी बखूबी इस्तेमाल किया। चाहे माधवराव सिंधिया का राजनीतिक सफर हो या फिर उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) का राजनीतिक उदय, हर समय माधवीराजे (Madhavi Raje Scindia) इसके पीछे रहीं।

धीरे-धीरे जमाया राजनीति में कदम

दरअसल, राजपरिवार से दादा जुद्ध शमशेर बहादुर नेपाल के प्रधानमंत्री थे। राणा वंश के मुखिया भी रहे थे। इसलिए उनको राजनीति की पूरी समझ थी। 1966 में माधवराव सिंधिया के साथ उनका विवाह हुआ था। माधवराव सिंधिया उस समय राजनीति में कदम रख चुके थे। माधवीराजे सिंधिया (Madhaviraje Scindia) पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ राजनीति में भी सक्रिय रहती थी। शुरुआत में वे माधवराव सिंधिया (Madhavarao Scindia) के करीबियों से बात करती थी, लेकिन जैसे-जैसे सिंधिया राजनीति में ऊंचाई को छूने लगे माधवीराजे उनका कदम मिलाकर साथ देने लगीं।

बारात ले जाने हुए थे विशेष इंतजाम

माधवराव सिंधिया (Madhavrao Scindia) का विवाह ग्वालियर के दिल्ली में हुआ था। ऐसे में बारात ले जाने के लिए विशेष इंतजाम किए गए थे। ग्वालियर से दिल्ली के बीच विशेष ट्रेन चलाई गई। जिससे ग्वालियर के महाराज माधवराव सिंधिया अपनी बारात लेकर गए थे। 8 मई 1966 को परंपरागत रूप से शादी संपन्न हुई थी और माधवीराजे रानी बनकर ग्वालियर आ गईं।

महल से निकल जनसभाएं लेतीं और चुनावी रणनीति तैयार करतीं

माधवराव सिंधिया के राजनीतिक सफर में कई उतार-चढ़ाव आए। सिंधिया को चुनाव जीतने के संघर्ष भी करना पड़ा, ऐसे में माधवीराजे सिंधिया ने उनका पूरा साथ दिया। सिंधिया महल से बाहर निकलकर वे जनता की बीच पहुंची और जमकर प्रचार भी किया। सर्दी हो या गर्मी वे प्रचार करती थी और चुनावी सभाएं लेती थी। रानी को देखने के लिए सभाओं में भीड़ उमड़ती थी और वे पूरे आत्मविश्वास के साथ भाषण देकर अपनी को बात को रखती थी।
माधवीराजे सिंधिया (Madhaviraje Scindia) को लोग राजमाता के कहते थे, लेकिन मैं उनकी शादी से उनको जानता था इसलिए मैं उनको भाभी साहब ही कहता था। वे सिंधिया के मित्रों से व्यक्तिगत रूप से मिलती थी और सिंधिया महल में जो भी पार्टी होती थी, उसमें क्या खाना बनेगा। कैसी व्यवस्था रहेगी। सब वे ही करती थी।

खुद नहीं आईं राजनीति में, बेटे को आगे बढ़ाया

माधवराव सिंधिया के निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) को राजनीति में उतारने में उनका बड़ा योगदान रहा। वे राजमाता विजयाराजे सिंधिया (Rajmata Vijayaraje Scindia) की तरह न केवल राजनीतिक समझ रखती थीं, बल्कि वे सक्षम भी थीं, लेकिन उन्होंने खुद पीछे रहकर बेटे ज्योतिरादित्य के लिए राजनीतिक जमीन तैयार की।
वे चाहती थीं, परिवार से कोई एक ही राजनीति में रहे। इसके लिए वे माधवराव सिंधिया के जो करीबी राजनीतिक लोग थे उनसे बात करती थीं और ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) को पूरा सहयोग करती थीं। हालांकि सिंधिया के निधन के बाद वे ग्वालियर से ज्यादा दिल्ली में रहती थी। वे वहां भी ग्वालियर से जाने वाले लोगों से सहज रूप से मिलती थीं। माधवीराजे सिंधिया (Madhavi Raje Scindia) के आसामयिक निधन से सिंधिया परिवार को गहरी क्षति हुई।
जैसा पूर्व वरिष्ठ कांग्रेस नेता बालेंदु शुक्ल ने पत्रिका को बताया

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