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ग्वालियर

ऊर्जा मंत्री ने दिग्विजय सिंह के पूर्वजों पर उठाए सवाल, पूछा बताएं गद्दार कौन

ऊर्जा मंत्री ने कहा ‘दिग्विजय सिंह के पूर्वजों ने खुद स्वीकार किया था, हम पीढ़ियों से देते आए हैं अंग्रेज सरकार का साथ’

ग्वालियरDec 07, 2021 / 05:17 pm

Hitendra Sharma

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ग्वालियर. मध्यप्रदेश की राजनीति में राजा महाराज के बीच शुरू हुई जुबानी जंग थमने का नाम नहीं ले रही है। दिग्विजय सिंह के गद्दार वाले बयान को लेकर सिधिया ने कहा था कि उम्र के चलते मानसिक संतुलन बिगड़ गया है। अब सिधिया समर्थक ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर निशाना साधते हुए कहा है कि ‘खुद जिनके परिवार का इतिहास कदम-कदम पर गद्दारी, विश्वासघात व अंग्रेजों की चापलूसी में रंगापुता हो, उन्हें सिंधिया परिवार पर उंगली उठाने का कतई हक नहीं है’।

मंत्री प्रद्युम्न ने कहा कि ‘कांग्रेस पार्टी में रहते दिग्विजयसिंह अपने पूरे राजनीतिक जीवन में अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ साजिशें रचते रहे हैं। देश के आजाद होने से पहले दिग्विजय के पिता और उनके पूर्वज अंग्रेजों से हाथ मिलाकर अपना राजपाट बचाते रहे हैं। तोमर ने बताया कि राघौगढ़ के राजा ने 1775 से 1782 तक राघौगढ़ के राजा बलभद्र सिंह को मराठों से विश्वासघात करने पर ग्वालियर किले में कैद रखा था। इसी परिवार के राजा जयसिंह ने भी देश से गद्दारी करते हुए अंग्रेजों का साथ दिया था।

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आखिर क्या कहा ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने देखें वीडियो…

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तोमर ने आरोप लगाया कि दिग्विजय सिंह के पूर्वजों ने महादजी सिंधिया के खिलाफ भी गद्दारी की थी। जब महान सिंधिया शासकों ने राघौगढ़ के राजा को दण्डित किया तो बचने के लिए उन्होंने जयपुर व जोधपुर राजघरानों तक से सिफारिश लगवाई थी। प्रद्युम्न ने अपने इस आरोप को साबित करने के लिए ऐतिहासिक दस्तावेजों का हवाला भी दिया है।

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उन्होंने बताया कि राजा बलभद्र सिंह ने 16 सितंबर 1939 को अंग्रेजों को पत्र लिखा था कि ‘मेरे पूर्वजों ने 1779 से ब्रिटिश सरकार को भरपूर सेवाएं प्रदान की हैं। मेरे पिताजी ने भी आपको निजी सेवा प्रदान की है। पिछले युद्ध के समय भी ब्रिटिश सरकार को राघोगढ़ ने सेवा दी है। अब मैं आपको अपनी वफादारी से भरी सेवा देना अपना धर्म समझता हूं। ऊर्जा मंत्री तोमर ने खुलासा किया कि दिग्विजय सिंह के पिता बलभद्र सिंह का अंग्रेजों को लिखा ये पत्र सन 2002 में भोपाल में राजकीय अभिलेखागार और पुरातत्व विभाग द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी में रखा गया था।

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