वैसे तो कल ही चंद मिनट बाद साफ हो गया था कि सात साल पहले 2010 में यूपीए की सरकार के समय “सी-प्लेन” की सेवा अंडमान के लिए शुरू हो चुकी थी। अब पूरे तथ्य मय फोटो उपलब्ध भी हैं। तब के उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल की फोटो सहित। देख लीजिएगा।
खैर।
खैर।
आइये इस बहाने आपको इतिहास में ले चलते हैं। शायद आपको यकीन न हो लेकिन ये सौ फीसदी सच है कि ग्वालियर में आज से सत्तर साल पहले पानी पर उतरने वाले हवाई जहाज़ आते थे।
बात दूसरे विश्व युद्ध के समय की है। ब्रिटिश वायुसेना को अपने हवाई बेड़े के लिए तेल- पानी की ज़रूरत पड़ती थी। तब ग्वालियर में हवाई अड्डा नहीं था।
उस समय ब्रिटिश वायु सेना के ये विमान ईंधन लेने ग्वालियर के तिघरा बांध पर उतरते थे। इन विमानों की तस्वीरें भी मौजूद हैं।
उस समय ब्रिटिश वायु सेना के ये विमान ईंधन लेने ग्वालियर के तिघरा बांध पर उतरते थे। इन विमानों की तस्वीरें भी मौजूद हैं।
पेट्रोलियम के बड़े कारोबारी नगर सेठ लाला भिखारीदास ,लाला काशीनाथ वैश्य (जी हां वही वैश्य एंड मुखर्जी पेट्रोल पंप वाले )का तेल का कारोबार था। उनके यहां से इन बीच क्राफ्ट या सी-प्लेन को ईंधन सप्लाई होता था।
द्वितीय विश्व युद्ध के समय तिघरा के पानी पर उतरे हवाई जहाजों की फोटो ब्रिटेन के “एम्पीरियल वार म्यूजियम” में हैं।
फोटो के विवरण में लिखा है..-
British Overseas Airways corporetion and Qantas ,1940- 45
Sort S- 23 C class Empire Flying Boat,
G- ADUV Corsair Moored on the Lake of Gwalior India
ये दस्तावेज़ और तस्वीरें एयर मिनिस्ट्री सेकंड वर्ड वार ऑफिसियल कलेक्शन का हिस्सा हैं।
फोटो के विवरण में लिखा है..-
British Overseas Airways corporetion and Qantas ,1940- 45
Sort S- 23 C class Empire Flying Boat,
G- ADUV Corsair Moored on the Lake of Gwalior India
ये दस्तावेज़ और तस्वीरें एयर मिनिस्ट्री सेकंड वर्ड वार ऑफिसियल कलेक्शन का हिस्सा हैं।
(वैसे निज़ाम के राज में हैदराबाद में भी जमीन और पानी दोनों पर उतरने वाले हवाई जहाज मौजूद थे। तस्वीरें भी हैं ) प्रसंगवश ध्यान दिलाना ठीक रहेगा कि तिघरा बांध माधवराव सिंधिया प्रथम ने सौ साल तिघरा बांध इंजीनियर्स के पितामह एम विश्वेसरैया की देखरेख में 1916 में बनकर तैयार हुआ था। विश्वेसरैया तब मैसूर रियासत के चीफ इंजीनियर थे और माधव महाराज के अनुरोध पर ग्वालियर आये थे। तिघरा आज भी ग्वालियर की प्यास बुझा रहा है।
किस्सा तो ये भी है कि माधव महाराज प्रथम की 1925 में फ़्रांस में मृत्यु हुई थी। तब उनका अंतिम संस्कार वहां किया गया और अवशेष आदि लेकर ऐसा ही कोई सी-प्लेन शिवपुरी की चांद पाठा झील में उतरा था। शिवपुरी तब सिंधिया शासकों की ग्रीष्मकालीन राजधानी होती थी।
(फेसबुक वॉल से साभार)
(फेसबुक वॉल से साभार)