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हाथरस

यहां 1882 से निकाली जा रही ‘मूछों वाले श्रीराम’ की तिमंजिला रथयात्रा

श्रीराम जन्म के उपलक्ष में निकलने वाली तिमंजिला रथयात्रा ने इस वर्ष अपना 137वां वर्ष पूरा कर लिया।

हाथरसApr 15, 2019 / 11:01 am

suchita mishra

shobha yatra

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हाथरस। श्रीराम जन्म के उपलक्ष में निकलने वाली तिमंजिला रथयात्रा ने इस वर्ष अपना 137वां वर्ष पूरा कर लिया। रथयात्रा का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है। यह यात्रा 1882 से निकाली जा रही है। देश की एकमात्र रथयात्रा है, जिसमें श्रीराम का विग्रह मूंछों वाला होता है। रथयात्रा की शान पूरे नगर ने देखी। श्रीराम की आरती उतराने के लिए लोग लालायित रहे।
वृंदावन से शुरू हुई कहानी
हाथरस में चैत्रीय नवरात्र की नवमीं तिथि को निकलने वाली श्रीरामजानकी तिमंजिला रथयात्रा का अपना एक अनोखा इतिहास है। इसके रचियताओं में खासतौर से हाथरस के प्रसिद्ध और उदारवादी सेठ बैनीराम का नाम सामने आता है। उन्होंने यह इतिहास सन् 1882 में लिखा था। उनके दिमाग में इस रथयात्रा का स्वप्न वृंदावन से पनपा। सेठा बैनीराम सदैव की भांति वृंदावन में निकलने वाली श्री रंगनाथन जी महाराज की शोभायात्रा देखने गए थे। सेठ की बग्गी पर सवार सारथी ने वृंदावन के रास्तों से भीड़ में आवाज लगाई कि हाथरस के नगर सेठ बैनीराम की सवारी है, कृपया रास्ता दे दो। यह सुनकर भीड़ से किसी मनचले ने यह उत्तर दिया कि इतने ही बड़े सेठ हैं तो हाथरस में ही इतनी बड़ी शोभायात्रा क्यों नहीं निकलवा लेते। तिमंजिला रथयात्रा के पूर्व संचालक दुर्गाप्रसाद पोद्दार के सुपुत्र पुनीत पोद्दार ने बताया कि बस इतनी सी बात सेठ जी को चुभ गई। हाथरस लौटकर 15 दिन की कड़ी मशक्कत के बाद ही तिमंजिला रथयात्रा चैत्रीय नवरात्र की नवमी तिथि को निकलवा दी।
रथयात्रा में मूछों वाले राम जी
यह बताने में कतई गुरेज नहीं होता कि हाथरस में ही केवल ऐसा इतिहास निकलकर सामने आता है जहां पर मूंछों वाले रामजी के दर्शन होते हैं। सेठ बैनीराम द्वारा संचालित शोभायात्रा में रामजी का विग्रह मूंछों वाला है। यात्रा संचालकों ने बताया कि पूरे उत्तर प्रदेश में हाथरस में ही केवल एकमात्र ऐसा विग्रह है, जहां पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के मूंछें हैं।
सभी रास्तों से काटे जाते हैं बिजली के तार
तिमंजिला रथ शोभयात्रा के लिए यह भी एक इतिहास बनता जा रहा है कि शोभायात्रा के लिए उन सभी मार्गों के विद्युत तारों को काट दिया जाता है, जहां से शोभायात्रा निकाली जाती है। क्योंकि शोभायात्रा इतनी ऊंची है कि बिना अवरोधों को हटाए मार्गों पर शोभायात्रा का निकलना संभव नहीं हो सकता।
इन मार्गों से होकर निकली शोभायात्रा
हाथरस के चामड़ गेट स्थित रथवाली बगीची से आरंभ होकर शोभायात्रा चामड़ गेट, सब्जीमंडी, नयागंज, बारहद्वारी, पत्थर बाजार, चैक सर्राफा, गुड़हाई बाजार, सासनी गेट क्रांति चौक, सासनी गेट हनुमान चौक होते हुए बाग बैनीराम पहुंची। यहां पर देर रात तक आतिशाबाजी की प्रदर्शनी हुई।
मुख्य आकर्षण महाकाली प्रदर्शन
शोभायात्रा तो अपने आपमें ही ऐतिहासिकता का ओहदा रखती है, लेकिन इसमें खासतौर से आकर्षण का केंद्र होता है महाकाली प्रदर्शन। अगर यह बोला जाए कि बृज में हाथरस का महाकाली प्रदर्शन अपने आप में प्रमुखता रखता है, तो गलत नहीं होगा।
हाथरस की प्रसिद्धि में शोभायात्रा का भी भूमिका
ब्रज की द्वार देहरी हाथरस नगरी वैसे तो हींग, चाकू, रंग-गुलाल, महाकाली प्रदर्शन के अलावा कलम के सिपाही रहे काका हाथरसी, निर्भय हाथरसी के नाम से भी जानी और पहचानी जाती है, लेकिन हाथरस की प्रसिद्धि में मूंछों वाले रामजी की तिमंजिला रथयात्रा की भी अहम भूमिका है।

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