फ्रंटियर्स जर्नल में प्रकाशित निष्कर्षों से यह भी पता चला है कि चिकित्सक अधिकांश एंटीबायोटिक्स निर्धारित या सीधे देते हैं। 14 देशों में एक तिहाई उत्तरदाताओं ने बिना चिकित्सीय नुस्खे के एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन किया। कुछ देशों में, 40 प्रतिशत से अधिक एंटीबायोटिक्स बिना चिकित्सकीय सलाह के प्राप्त की गईं।
सर्वे में यह भी सामने आया कि एंटीबायोटिक्स को लेकर लोगों में जागरुकता की कमी है। यह रिसर्च स्पष्ट रूप से शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता को दर्शाता है। रोगाणुरोधी दवाओं की प्रभावशीलता को संरक्षित करने के लिए कई स्तरों पर हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है, जैसे समय पर टीकाकरण, बेहतर स्वच्छता और अनुचित नुस्खे में कमी।
अधिकांश लोग एंटीबायोटिक्स का कोर्स पूरा नहीं करते। तबीयत में सुधार होते देख वो दवा लेना बंद कर देते हैं। या कभी वायरल की चपेट में आएं तो उसके लिए सेव कर लेते है। इस तरह की प्रेक्टिस सही नहीं है और इससे नुकसान पहुंचता है।