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वर्क फ्रॉम होम से भी युवाओं में बढ़ी बीमारियां, पारंपरिक खानपान व सही दिनचर्या से बचाव

सही दिनचर्या और पारंपरिक खानपान से दूरी, तनाव भरे काम व नशे की लत से कई युवाओं में पहले से ही गंभीर बीमारियों का खतरा था।

जयपुरJan 14, 2021 / 08:08 pm

Hemant Pandey

वर्क फ्रॉम होम से भी युवाओं में बढ़ी बीमारियां, पारंपरिक खानपान व सही दिनचर्या से बचाव

वर्क फ्रॉम होम से भी युवाओं में बढ़ी बीमारियां, पारंपरिक खानपान व सही दिनचर्या से बचाव

सही दिनचर्या और पारंपरिक खानपान से दूरी, तनाव भरे काम व नशे की लत से कई युवाओं में पहले से ही गंभीर बीमारियों का खतरा था। लेकिन लॉकडाउन व वर्क फ्रॉम होम से बीमारियों का खतरा और बढ़ गया है। इसकी मुख्य वजह घर-ऑफिस के बीच तालमेल का अभाव, लंबे समय तक बैठे रहना, हैवी डाइट, कम पानी पीना और शारीरिक गतिविधियों में कमी है।
तनाव व याद्दाश्त की समस्या
घर से काम करने पर तनाव अधिक होता है। घर और ऑफिस के बीच तालमेल बैठाने में दिक्कत होती है। इससे अनिद्रा और एंजाइटी बढ़ रही है। साथ ही शरीर में हार्मोनल बैलेंस बिगडऩे से भी कई दिक्कतें हो रही हैं।
शारीरिक गतिविधियां न होना भी प्रमुख कारण
युवाओं में खराब दिनचर्या से शारीरिक गतिविधियां कम हुई हैं। ऑफिस जाने से सही दिनचर्या बनी रहती, माहौल बदलता है। वहीं वर्कफ्रॉम होम से इसमें भी कमी आई है। व्यायाम न करने से मेटाबॉलिज्म बढ़ता और इससे मोटापा, हाइपरटेंशन, टाइप-2 डायबिटीज, हृदय व हड्डी से जुड़े रोगों में बढ़ोत्तरी होती है।
बैठने का तरीका बदलें
वर्कफ्रॉम होम है तो जंक-फास्ट फूड्स न खाएं। इसमें कैलोरी ज्यादा होती है। मोटापा बढ़ता है। कोई नशा करते हैं तो इसे छोडऩे के लिए अच्छा समय है, कोशिश करें। वर्क फ्रॉम होम में भी ऑफिस की तरह टेबल-चेयर पर बैठकर काम करें। हर आधे घंटे पर उठकर टहलें। पानी पीएं।
स्थानीय और मौसमी चीजें डाइट में ज्यादा शामिल करें
युवाओं को पारंपरिक, स्थानीय और मौसमी चीजें अधिक खानी चाहिए। अभी आंवला, पालक, बथुआ, पत्तेदार चीजें ज्यादा खाएं। खाने में स्थानीय चीजें जैसे चावल, दाल, रोटी, दही, छाछ, राबड़ी आदि खाएं। कोशिश करें कि जहां रहते हैं वहां की पारंपरिक ही चीजें ही खाएं। ये बीमारियों से बचाते हैं।
नींद की कमी से बीमारियों की आशंका अधिक
यु वा किसी दिनचर्या या नियम में बंधने को तैयार नहीं होते हैं। इससे उनकी नींद का चक्र बिगड़ जाता है। डे-नाइट शिफ्ट से बायोलॉजिकल क्लॉक बिगड़ती है। वहीं वर्कफ्रॉम होम से सोने-उठने का कोई समय निर्धारित नहीं रहता है। कई शोधों में देखा गया है कि लॉकडाउन के बाद युवाओं की नींद में कमी हो गई है। पर्याप्त नींद नहीं ले पा रहे हैं। शारीरिक-मानसिक परेशानियां हो रही हंै।

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