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स्वास्थ्य

तनाव: लॉकडाउन खत्म हुआ है बच्चों का स्ट्रेस नहीं, ऐसे कम करें उनका तनाव

पढ़ाई और कॅरियर के अलावा इस महामारी ने भी बच्चों में तनाव के स्तर को बढ़ाने का काम किया है

Nov 08, 2020 / 11:05 am

Mohmad Imran

तनाव: लॉकडाउन खत्म हुआ है बच्चों का स्ट्रेस नहीं, ऐसे कम करें उनका तनाव

तनाव: लॉकडाउन खत्म हुआ है बच्चों का स्ट्रेस नहीं, ऐसे कम करें उनका तनाव

बचपन हमारी जिंदगी का सबसे बेहतरीन समय होता है। लेकिन जैसे-जैसे मानव सभ्यता तेजी से आगे बढ़ रही है, तकनीक की चमक-दमक में मासूम बचपन की मीठी यादें भी हर गुजरते साल के साथ कम होती जा रही हैं। वहीं शुरुआती शैक्षणिक वर्षों में माता-पिता की अपेक्षाओं का बोझ भी बच्चों पर बोझ बन रहा है। आज सभी अभिभावक गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में चाहते हैं कि उनका बच्चा स्पोर्ट्स चैंपियन, क्लास-टॉपर या इनोवेटर बने। लेकिन इस चूहा दौड़ में बच्चों का मासूम बचपन घुल रहा है। रही-सही कसर कोविड-19 वायरस ने पूरी कर दी। पहले ही क्लास और असाइनमेंट्स के बीच पिसकर खुले में खेलने से वंचित इन बच्चों के पास अब प्राकृतिक वातावरण में हरियाली के बीच खेलने का अवसर भी सीमित हो गया है। इसका दुष्परिणाम यह है कि अब बच्चों के स्क्रीन टाइम में बड़ी तेजी से वृद्धि हो रही है। वे काम कर रहे हों या नहीं उन्हें बच्चों को अपना स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट देने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। बच्चों को गैजेट्स देना अब माता-पिता के लिए खाना बनाने, ऑफिस का काम करने या कुछ देर शांति से रहने का एक आसान तरीका बन गया है। लेकिन क्या यह वास्तव में आपके बच्चे के मानसिक विकास और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए सबसे बेहतरीन विकल्प है?
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मनोवैज्ञानिक इस मुद्दे पर चिंतित
विश्व के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक गंभीर रूप से इस तरह की आदतों की ओर हमारा ध्यानाकर्षित कर रहे हैं ताकि बच्चों का बचपन गैजेट्स और तकनीक की भेंट न चढ़ जाए। वे वास्तव में, मानसिक स्वास्थ्य और नई पीढ़ी के यंग माइंड्स के स्वास्थ्य विशेषकर मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं। बाल मनोविज्ञान के विशेषज्ञ इस बात पर जोर दे रहे हैं कि लगातार कई महीनों तक चले लॉकडाउन और अब भी हमारे बीच महामारी के बाद किशोरों, छोटे बच्चों और युवाओं में माता-पिता एवं अभिभावकों, परिवार के अन्य सदस्यों एवं उनके शिक्षकों ने उनके व्यवहार में चिंताजनक नकारात्मक परिवर्तन महसूस किया है। कोविड-19 वायरस के संक्रमण के बीच, बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों में भी वृद्धि हो रही है। इनमें जिद, चिड़चिड़ापन, चिंता, घबराहट और व्यवहार में तल्खी और युवाओं में अवसाद के लक्षण सबसे आम हैं।

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इंटरनेट गतिविधियों और व्यवहार में आ रहे बदलाव पर नजर रखें
दरअसल, घर के अंदर रहने की मजबूरी बच्चों के मस्तिष्क पर भारी पड़ रही है। वे नियमित रूप से स्कूल भी नहीं जा पा रहे हैं। न ही अपने दोस्तों के साथ, पार्क या आउटिंग पर जा पा रहे हैं। बीते 8 महीनों से लगातार एक जैसी जीवन शैली और रुटीन उन्हें बीमार बना रहे हैं। मनोचिकित्सक और बाल विशेषज्ञ माता-पिताओं को अपने बच्चे के व्यवहार पर कड़ी नजऱ रखने और व्यवहार में किसी भी परिवर्तन पर चिकित्ससक को दिखाने की सलाह दे रहे हैं। मानसिक स्वास्थ्य रोग विशेषज्ञ और ‘स्रोटा’ वैलनेस के फाउंडर-सीईओ प्रवेश गौर के अनुसार इन लक्षणों पर ध्यान देना बेहद जरूरी-

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01. क्या बच्चे के सोने के पैटर्न में बड़े बदलाव आए हैं, जैसे कि अधिक नींद आना या सोने में असमर्थता जताना
02. सो कर उठने पर किसी बुरे सपने की शिकायत करना
03. लगातार सिरदर्द और पेट में दर्द रहना
04. बिना बात या बात-बात पर रोना
05. लंबे समय तक अकेले रहना
06. सामाजिक रूप से अलग-थलग रहने की आदत इत्यादि।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि व्यवहार और स्वास्थ्य संबंधी इन आदतों के इतर अपने बच्चों की इंटरनेट संबंधी गतिविधियों पर भी नजऱ रखना महत्वपूर्ण है। कक्षाओं के बाद वे इंटरनेट पर जो समय बिताते हैं उसे सीमित करें क्योंकि वे आभासी दुनिया (Virtual World) में पोर्नोग्राफी जैसी अत्यधिक असुरक्षित डिजिटल खतरे के शिकार हो सकते हैं। मानव चेहरों के पीछे छिपे जालसाज बच्चों को अपने जाल में फंसाने और उनका ऑनलाइन शोषण करने के लिए हर पल इंतजार में बैठे रहते हैं। मासूम बच्चों की एक गलती और गुमराह राहों पर बढ़ाया एक कदम उन्हें साइबर क्राइम से जुड़े अथाह गहरे दलदल में खींच सकता है। हाल ही में, मैनफोर्स company ने लॉकडाउन और महामारी के बीच चाइल्ड पोर्नोग्राफी को लेकर चिंता जताई और इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के मकसद से एक विज्ञापन अभियान भी शुरू किया है।
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युवाओं और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए टिप्स
लॉकडाउन और कोरोना के प्रसार ने हम सभी को कुछ हद तक तनाव देने का काम किया है। महामारी और तनाव देने वाले हालातों के बीच ये सुझाव बेहद काम के हो सकते हैं-
01. घबराएं नहीं और ‘न्यू नॉॅर्मल’ की आदत डालें
यदि आप अब भी स्थिति को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं तो आप अपने छोटे बच्चों को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ व सामान्य होने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? अपने बच्चों से इस महामारी की वास्तविकता और उससे जुड़े तमाम पहलुओं पर बात करें लेकिन संक्रमण से हुई मौतों की चर्चा न करें। ऐसा इसलिए ताकि उन्हें पता रहे कि सुरक्षित रखने के लिए क्या सावधानियां आवश्यक हैं। आठ महीने से अधिक का समय नए सामाजिक मानदंडों और न्यू नॉर्मल की आदत डालने के लिए एक लंबी अवधि है और हमें अपने बच्चों को भी इसके साथ सहज बनाना होगा।

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02. बच्चों के लिए एक शिड्यूल तय करें
पढ़ाने के अलावा स्कूल एक जो सबसे महत्वपूर्ण काम करते हैं वह है बच्चों के लिए एक शिड्यूल का निर्माण करना। स्कूल केवल पाठ्यक्रम पूरा करने या प्रमाणित मार्कशीट तक सीमित नहीं है बल्कि यह कम उम्र में ही बच्चों में अनुशासन और जीवन मूल्यों को स्थापित करने का सबसे सरल तरीका है। इसलिए बच्चों के लिए घर पर भी एक टाइम टेबल बनाएं और उसी के हिसाब से शिड्यूलिंग कर बच्चों के सोने, जागने, टीवी देखने, पढऩे या खेलने का समय तय करें। साथ ही उन्हें इसका पालन करने के लिए भी प्रेरित करें, ताकि उनका रुटीन बना रहे। अवकाश में खेलने के लिए अपने घर पर भी एक स्कूल के प्ले रूम की तरह एक कमरा बनाएं जो आपके शौक और मनोरंजन के साधनों से सुसज्जित हों।

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03. छोटे बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं
यदि आप पूरी लगन से अपने शिड्यूल को फॉॅलो करते हें तो आप अपनी नींद को प्रभावित किए बिना सीमित समय में घंटों तक बेहतर काम कर सकते हैं। परिवार के सदस्यों के बीच कामों का बंटवारा करें, बच्चों को भी उनकी क्षमता के अनुसार काम का जिम्मा सौंपें। इसमें रसोई, बागवानी या साफ-सफाई जैसे कामों में बच्चों की मदद ली जा सकती है। इससे आपके और बच्चों के बीच बेहतर संपर्क स्थापित होगा और यह उन्हें जिम्मेदार होने का अहसास भी करवाएगा।

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04. बच्चों को अपने दिल की बात कहने के लिए प्रोत्साहित करें
चिंता और अवसाद जैसे मानसिक मुद्दे अक्सर व्यक्ति की भावनाओं को दूसरों तक पहुंचने नहीं देते। इसलिए खुले, सकारात्मक और हल्के-फुल्के माहौल में बातचीत करने के लिए अपने बच्चों को लगातार प्रोत्साहित करते रहें। इससे उन्हें अपने अंतर्मन को व्यक्त करने में बहुत हद तक मदद मिल सकती है। लेकिन ध्यान रखें कि इस दौरान आपको उन्हें जज नहीं करना है। इस सारी कवायद का मकसद परिवार और जरूरत पड़े तो विशेषज्ञ की सहायता से बच्चों की सकारात्मक ऊर्जा को सही दिशा प्रदान करना है। बचपन में बिताया हुआ खुशनुमा समय किसी भी व्यक्ति के जीवन की नींव रखने का काम करते हैं। यह निश्चित रूप से, अब एक विश्व स्तरीय विषय बन गया है कि हम आज ही यह तय करें कि हमारी अगली पीढ़ी के लिए सबसे अच्छा क्या है? आशा है कि इन सुझावों और विसतार से की गई चर्चा से आप निश्चित रूप से अपने बच्चों के लिए महमारी के दौर में भी बेहतर माहौल और वही पुराना बचपन लौटा सकेंगे।

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