एम्स के नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. एसके अग्रवाल का कहना है कि हर दिन 200 किडनी रोगी ओपीडी पहुंच रहे हैं। इनमें 70 फीसदी किडनी फेल या डायलिसिस के होते हैं। जाहिर है लोग देरी से किडनी का उपचार कराने पहुंच रहे हैं।
इसी तरह बनारस हिंदू विवि के प्रोफेसर डॉ. केएन द्विवेदी का कहना है कि समय पर किडनी रोग की पहचान से इसे बचाया जा सकता है। कुछ समय पहले बीएचयू में हुए अध्ययन में नीरी केएफ्टी कारगार साबित हुई है।
इंडो अमेरिकन जर्नल ऑफ फॉर्मास्युटिकल रिसर्च में प्रकाशित शोध के अनुसार पुनर्नवा के साथ गोखरु, वरुण, पत्थरपूरा, पाषाणभेद, कमल ककड़ी बूटियों से बनी नीरी केएफ्टी किडनी में क्रिएटिनिन, यूरिया व प्रोटीन को नियंत्रित करती है। क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को स्वस्थ्य करने के अलावा हीमोग्लोबिन को भी बढ़ाती है। एमिल फॉर्मास्युटिकल के संचित शर्मा का कहना है कि इस उपचार को जापान, कोरिया और अमेरिका भी अपना रहे हैं। आयुष मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पीएम मोदी ने 12,500 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर की मंजूरी दी है। वर्ष 2021 तक यहां किडनी की न सिर्फ जांच, बल्कि नीरी केएफ्टी जैसी दवाओं से उपचार भी दिया जाएगा।
सर गंगाराम अस्पताल के डॉ. मनीष मलिक का कहना है कि देश में लंबे समय से किडनी विशेषज्ञों की कमी बनी हुई है। ऐसे में डॉक्टरों को एलोपैथी के ढांचे से बाहर निकलकर आयुर्वेद जैसे वैकल्पिक चिकित्सा को अपनाना चाहिए।