आज यहां पत्रकारों से बातचीत में करण दलाल ने आरटीआई से मिली जानकारी के के आधार पर बताया कि राज्य में बिजली की मांग 3500 मैवावाट से लेकर 9800 मैगावाट के बीच रहती है लेकिन, हरियाणा सरकार प्राइवेट पार्टियों के अलावा दूसरे माध्यमों से 11086.3 मैगावाट बीजली खरीद रही है। मांग के मुकाबले ज्यादा बिजली की खरीद करना सवाल खड़े कर रहा है कि जब बिजली की मांग ज्यादा नहीं है तो प्राइवेट पार्टियों से ज्यादा खरीद क्यों की जा रही है।
दलाल ने 1286 मैगावाट अतिरिक्त बिजली खरीदने पर सरकार से स्पष्टीकरण देने की मांग की। दलाल ने इस बात पर भी सवाल खड़ा किया कि सरकार ने अपने तीन थर्मल पॉवर प्लांट बंद कर दिए और दूसरे हाथ प्राइवेट पार्टियों से बिजली खरीदने का सिलसिला चलाया।
उन्होंने इसमें संदेह जाहिर करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि राज्य सरकार प्राइवेट कंपनियों के हाथों में खेल रही है और इससे प्रदेश का नुकसान हो रहा है। उन्होंने सरकार पर प्राइवेट पार्टियों से ज्यादा कीमतों पर बिजली खरीद का आरोप लगाते हुए कहा कि इसका भार आम उपभोक्ताओं पर पड़ रहा है।
उन्होंने यह भी सवाल खड़ा किया कि जब मांग से ज्यादा बिजली खरीदी जा रही है तो आखिर क्यों शहरों और गांवों के लोगों को बिजली कट का सामना करना पड़ता है। क्या वजह है कि इंडस्ट्री सेक्टर बिजली की किल्लत की बात आज भी कर रहा है। उन्होंने कहा कि बिजली कट के कारण शहरों और गांवों में पीने के पानी की सप्लाई भी प्रभावित हो रही है और लोग परेशान हैं।
पूर्व मंत्री दलाल ने कहा कि यह बात भी समझ से परे है कि सरकार ने आजतक भी बिजली खरीद के मामले में प्राइस कंट्रोल मैकेनिज्म खड़ा नहीं किया। अगर ऐसा होता को बिजली उपभोक्ता आए दिन महंगी बिजली दरों के दबाव में आने से बच जाते। दलाल ने कहा कि इसके उलट प्रदेश के म्यूनिसिपल इलाको में 2 फीसदी अतिरिक्त सरचार्ज थओप दिया गया है। यहां तक कि मौजूदा सरकार ने स्लैब सिस्टम भी खत्म दिया है।
कांग्रेसी विधायक ने बताया कि कांग्रेस के शासनकाल में घरेलू उपभोक्ताओं की सहूलियत के लिए बिजली के तीन स्लैब बनाए गए थे और इसका फायदा उपभोक्ताओं को मिल रहा था लेकिन, मौजूदा सरकार ने जनता की जेब का नुकसान पहुंचाने का काम किया।