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खगोलशास्त्री थे, नौकरी से निकाल दिया गया तो अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ीफ्रैंक कामेनी ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ आवाज उठाना शुरू किया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसके अलावा 1960 के दशक में पहली बार वह समलैंगिकों के समर्थन में प्रदर्शन करने को आगे आए। न्यूयार्क के क्वींस में 1925 में जन्में फ्रैंक कामेनी को समलैंगिकों यानी एलजीबीटीक्यू के अधिकारों के लिए लडऩे वाले सबसे अहम प्रभावशाली चेहरों में गिना जाता है। पढऩे-लिखने में वह शुरू से तेज थे। 15 साल की उम्र में भौतिक विज्ञान पढऩे के लिए क्वींस कॉलेज में एडमिशन मिल गया। खगोलशास्त्री बने, मगर हालात की वजह से समलैंगिकों के लिए सक्रिय कार्यकर्ता के तौर पर आगे आए, फिर भी खगोलशास्त्री के तौर पर मूल काम को जिंदा रखा और कई महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की।
यही नहीं, फ्रैंक कामूनी ने दूसरे विश्व युद्ध में भी हिस्सा लिया। वह यूरोपिय सेना की ओर से लड़ाई लड़े। सेना छोडऩे के बाद उन्होंने फिर क्वींस कॉलेज का रुख किया और 1948 में भौतिक विज्ञान में स्नातक की उपाधि हासिल की। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए हार्वर्ड विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की डिग्री ली। खगोलशास्त्री के तौर पर काम कर रहे थे, मगर आर्मी मैप सेवा में काम करने के दौरान उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया, क्योंकि सभी को यह पता चल गया था कि वह समलैंगिंक हैं।
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व्हाइट हाउस और पेंटागन के सामने किया प्रदर्शन, राजनीति में भी आएअपने हक की आवाज को बुलंद करने के लिए फ्रैंक कामेनी ने 1965 में व्हाइट हाउस और बाद में पेंटागन के बाहर विरोध-प्रदर्शन किया। हालांकि, उनके साथ 10 और लोग प्रदर्शन का हिस्सा बने। इसके बाद स्टोनवॉल हिंसा के बाद उन्होंने देश का पहला समलैंगिंक अधिकार वकालत समूह तैयार किया। इसके बाद उन्होंने अधिकारों को कानूनी मान्यता दिलाने और अपने अधिकारों को मजबूती से रखने के लिए राजनीति का रुख किया। 1971 में अमरीकी कांग्रेस के लिए खड़े होने वाले कामेनी पहले समलैंगिंक बने। उनके इन संघर्षों को देखते हुए समलैंगिंक अधिकारों का नेतृत्वकर्ता कहा जाने लगा। वर्ष 2009 में नौकरी से निकाले जाने के करीब 50 साल बाद कामेनी से अमरीकी सरकार ने औपचारिक रूप से माफी मांगी। यह भी उनकी बड़ी जीत थी।