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सूर्य की रोशनी से शुद्ध होगा तालाबों और झीलों का पानी

प्रकाश की उपस्थिति में यह आण्विक पिंजरा प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन उत्पन्न करता है, जो बैक्टीरिया को खत्म कर देता है। यह बैक्टीरिया को आकर्षित करता है। इसका विकास सुप्रामोलेक्यूलर रसायन के सिद्धांत पर हुआ है।

Nov 18, 2020 / 02:08 pm

सुनील शर्मा

भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) के वैज्ञानिकों ने अणुओं से पिंजरे जैसी एक ऐसी संरचना संश्लेषित की है जो सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पानी में घुलकर उसमें मौजूद रोगजनक बैक्टिरिया को मारने में सक्षम है। यह आण्विक पिंजरा (PMB1) एक प्राकृतिक एंजाइम की तरह भी काम करता है। इस तकनीक से बड़े बड़े तालाबों और जलाशयों का पानी शुद्ध किया जा सकेगा।
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यूं खत्म करता है बैक्टीरिया
IISC में अकार्बनिक एवं भौतिक रसायन विभाग के शोधकर्ता सौमल्या भट्टाचार्य ने बताया कि प्रकाश की उपस्थिति में यह आण्विक पिंजरा प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन उत्पन्न करता है, जो बैक्टीरिया को खत्म कर देता है। यह बैक्टीरिया को आकर्षित करता है। इसका विकास सुप्रामोलेक्यूलर रसायन के सिद्धांत पर हुआ है।
पहली बार घुलनशील एंजाइम का हुआ विकास
शोधकर्ताओं का कहना है कि पहली बार बैक्टीरिया रोधी एजेंट के तौर पर एक घुलनशील आण्विक पिंजरे का विकास हुआ है। अभी तक जो एजेंट विकसित किए गए हैं वे पानी में घुलनशील नहीं हैं। हालांकि आण्विक पिंजरे का उपयोग उत्प्रेरक के तौर पर स्मार्ट मैटेरियल के विकास में, दवाओं की आपूर्ति अथवा सेंसर आदि में हो सकता है।
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व्यापक उपयोग होगा संभव
जल शुद्धि व प्राकृतिक एंजाइम के तौर पर भी इसका व्यापक उपयोग होगा। इसी आधार पर स्पंज जैसी एक संरचना विकसित की जा सकती है जिससे गुजरने के बाद पानी कीटाणुरहित हो पीने योग्य बन जाएगा। प्रो. पार्थसारथी मुखर्जी व डॉ. मृण्मय डे के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम ने यह महत्वपूर्ण शोध किया है।

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