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कैसे हुआ था गणपति का जन्म और कैसे धड़ से अलग हुआ था सिर, पुराणों में लिखी कथाएं पढ़ दंग रह जाएंगे आप

माता की आज्ञाओं को पालन करने के काम पर लगे बालक ने भगवान शिव को भी भवन में प्रवेश करने से रोक दिया।

Sep 13, 2018 / 11:53 am

Sunil Chaurasia

lord ganesha

कैसे हुआ था गणपति का जन्म और कैसे धड़ से अलग हुआ था सिर, पुराणों में लिखी कथा पढ़ दंग रह जाएंगे आप

नई दिल्ली। आज गणेश चतुर्थी है और पूरी दुनिया के तमाम लोग इस पर्व को धूमधाम से मना रहे हैं। आज इस खास अवसर पर हम आपके लिए भगवान गणेश से जुड़ी ज़बरदस्त बातें बताने जा रहे हैं, जिसे जानने हम सभी के लिए काफी महत्वपूर्ण है। हिंदू पुराणों में भगवान गणेश के जन्म के साथ-साथ उनके सिर के कटने जैसे विषय पर अलग-अलग कथाएं हैं। आज हम आपको इन दोनों विषयों पर शिव पुराण के साथ-साथ ब्रह्मवैवर्त पुराण की उन कथाओं के बारे में बताने जा रहे हैं।
शिव पुराण-
शिव पुराण में लिखी कथा के मुताबिक एक बार भगवान शिव की सवारी नंदी महाराज ने माता पार्वती द्वारा दिए गए आज्ञा को निभाने में कमी कर दी थी। जिसके बाद माता पार्वती ने एक अपने शरीर के उबटन से एक बालक को जन्म दिया। माता पार्वती ने उस बालक से कहा कि वे उनके पुत्र हैं, और केवल उन्हीं की आज्ञाओं का पालन करेंगे। बालक को कुछ दिशा-निर्देश देने के बाद माता पार्वती स्नान के लिए जाने लगीं और बालक से कहा कि इस दौरान कोई भी अंदर न पाए। माता की आज्ञाओं को पालन करने के काम पर लगे बालक ने भगवान शिव को भी भवन में प्रवेश करने से रोक दिया। जिससे गुस्साए भोलेनाथ ने अपने त्रिशूल से बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया।
बालक का सिर अड़ से अलग हुआ देख माता पार्वती का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। उनके क्रोध से पूरी ब्रह्मांड में प्रलय आ गई। सृष्टि को बर्बाद होता देख वहां सभी देवी-देवता आ पहुंचे और भोलेनाथ की स्तुति कर बालक को पुनः जीवित करने का आग्रह किया। सृष्टि का ऐसा हाल और देवी-देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने विष्णु भगवान को एक सिर लाने का आदेश दिया। जिसके बाद विष्णु भगवान एक हाथी का सिर ले आए और बालक के धड़ के साथ जोड़कर उन्हें जीवित कर दिया। बालक पुनःजीवित हो गया, जिसके बाद समस्त देवी-देवताओं ने बालक को आशीर्वाद दिया और गणेश, गणपति, विनायक, विघ्नहर्ता, प्रथम पूज्य जैसे नाम दिए।
ब्रह्मवैवर्त पुराण-
ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखी कथा के मुताबिक गणपति के जन्म के बाद सभी देवी-देवता कैलाश पर्वत पर उनके दर्शन करने के लिए पहुंचे। बाल गणेश के दर्शन करने के लिए शनिदेव भी कैलाश पहुंचे, लेकिन उन्होंने बालक को अपनी आंखों से नहीं देखा। शनिदेव के ऐसे बर्ताव पर देवी पार्वती ने जब उनसे सवाल किया तो उन्होंने कहा कि उनकी पत्नी ने उन्हें श्राप दिया है कि उनकी नज़र मात्र से ही कोई भी चीज़ अनिष्ट हो जाएगी। शनिदेव का जवाब सुन माता पार्वती ने कहा कि पूरा ब्रह्मांड ईश्वर के अधीन है और उनकी इच्छा के बिना कुछ भी संभव नहीं है। देवी पार्वती ने शनिदेव को एकदम भयमुक्त होकर बालक को आशीर्वाद देने के लिए कहा।
माता पार्वती की बातें सुनकर जैसे ही शनिदेव ने बाल गणेश को देखा, वैसे ही गणेश भगवान का सिर उनके धड़ से अलग हो गया। पुत्र का सिर, धड़ से अलग होने के बाद मां पार्वती अत्यंत दुखी होकर विलाप करने लगीं। माता पार्वती की ऐसी स्थिति देखकर भगवान विष्णु से रहा नहीं गया और वे एक हाथी का सिर ले आए और बालक के धड़ से जोड़कर उन्हें पुनःजीवित कर दिया।

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