एक ग्रामीण ने बताया कि किसी ग्रामीण को यदि नया घर बनाना हो तो उसे निर्माण सामग्री लाने में पसीना छूट जाता है। ऐसे में कई लोग पक्का मकान तक नहीं बना पा रहे हैं। मानसून के वक्त हालात और भयावह हो जाते हैं। बच्चों को स्कूल तक किसी तरह दुपहिया वाहन पर बिठाकर छोडऩा पड़ता है। कई बार वाहन चालक फिसल जाते हैं। ग्रामीण अपने साथ किए जा रहे सौतेले व्यवहार से दुखी है। ग्रामीणों का कहना है कि कई छोटे गांवों में विकास के अधिक काम हुए हैं लेकिन उनके गांव की लगातार उपेक्षा हो रही है। ऐसे में इस बार फिर ग्रामीणों ने चुनाव में हिस्सा नहीं लेने का मानस बनाया है।
एक ग्रामीण ने बताया कि 2009 के लोकसभा चुनाव और तत्कालीन ग्राम पंचायत चुनाव का बहिष्कार किया था। बहिष्कार के बाद, अधिकारियों ने 2013-14 में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक पैकेज के तहत अधिकांश घरों में बिजली प्रदान करने और कुछ स्थानों पर कंक्रीट सड़कें बनाने का वादा किया था। ग्रामीणों ने कहा कि बार-बार प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों से आग्रह के बाद भी कोई काम की प्रगति न होते देख ग्रामीणों ने अपने बूते 80 हजार रुपए जुटाए।