आचार्यश्री विद्यानंदजी कुछ दिनों से अस्वस्थ थे। 19 सितंबर को सुबह 6 बजे प्रतिक्रमण कर संंल्लेखना लेकर अन्न, जल एवं सर्वपरिग्रह कर आचार्य पद त्याग दिया था। आचार्यश्री के निधन से देशभर के दिगंबर जैन समाज में शोक की लहर छा गई। आचार्य विद्यासागरजी, पुष्पगिरि तीर्थ के प्रणेता आचार्य पुष्पदंतसागर के साथ हर समाजजन ने उन्हें विनयांजलि अर्पित की। आचार्यश्री विद्यानंदजी ने जैन समाज की एकता-अखंडता के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए।
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आचार्य श्री का जीवन परिचय : सुरेंद्र से आचार्य श्री विद्यानंदजी बनने की गाथा आचार्य पुष्पदंत सागरजी ने कहा कि आकाश से ध्रुव तारा टूट गया। जिनकी साधना ने, तप ने, व्यक्तित्व ने, प्रज्ञा ने जैनत्व को, जैन धर्म को शिखर तक पहुंचाया। राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री तक पहुंचाया। विद्यानंदजी देश के पहले ऐसे संत हुए, जिन्होंने समाज में, संप्रदायों में संतुलन बनाए रखने के प्रयास किए। ऐसे भी पहले जैन संत रहे, जो पद विहार करते हुए हिमगिरि (हिमालय के उत्तुंग शिखर) पहुंचे। बद्रीनाथ धाम में दिगंबर जैन अष्टापद तीर्थ का विकास करने में बड़ी भूमिका निभाई।