डॉ. डोसी ने बताया कि कोरोना संक्रमण काल के बीच कुछ पल ऐसे भी आए जब डॉक्टर होने के बावजूद मैं डर गया था। हमारी टीम के सदस्य अस्पताल में भर्ती जूनी इंदौर थाना प्रभारी देवेंद्र चंद्रवशी के इलाज में जुटे थे। उनकी दो रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद राहत की सांस ली। फेफड़ों का संक्रमण भी काफी हद तक नियंत्रण में था। 20 अप्रेल की रात 11 बजे अचानक उनकी तबीयत बिगड़ने की सूचना मिली। रात 11 बजे से डेढ़ बजे तक उनके साथ रहा और पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें बचा नहीं सके। अपनी आंखों के सामने इस तरह से जिन्दगी को हाथ से फिसलते देख उस दौरान डॉक्टर होने के बाद भी मैं डर गया था।
डॉ. डोसी ने बताया कि हमारी टीम ने ही प्रदेश में सबसे पहले प्लाज्मा थैरेपी के जरिए मरीजों को ठीक करने की पहल की। इसके लिए सबसे पहले कोरोना संक्रमण से पूरी तरह ठीक हो चुके मरीजों को प्लाज्मा डोनेट करने के लिए प्रेरित किया। फिर उनके ब्लड से प्लाज्मा निकालकर ऐसे मरीजों को चढ़ाया, जिनकी हालत पहले से नाजुक थी। इसका हमें फायदा मिला और कई मरीजों को जीवनदान मिल सका।
चिकित्सकों की टीम के कई सदस्यों ने बताया कि कोरोना संकटकाल में जिस तरह आम आदमी को बीमारी का खतरा था, उतना ही खतरा हमें भी था। ऐसे में रोजाना मरीजों के बीच काम करते हुए घर जाना बहुत मुश्किल था। लगातार घर से बाहर रहकर मरीजों की सेवा में पूरा समय बिताया। लेकिन इस बात का सुकून था कि हमारी मेहनत सफल रही और सैकड़ों मरीजों को ठीक कर उन्हें सही सलामत उनके अपनों के बीच वापस पहुंचाया।