अपर आयुक्त राजीवकुमार अग्रवाल व संयुक्त आयुक्त वीरेंद्र जैन के निर्देशन में फर्जीवाड़े की जांच की जा रही है। सेंट्रल एक्साइज और वाणिज्यिक कर विभाग ने दिसंबर 2018 में मजदूर व गरीबों के आधार और पैन कार्ड से सरकार को 200 करोड़ रुपए की चपत लगाने का मामला पकड़ा था। एक ही नाम की फर्म व एक जैसे मोबाइल नंबरों के बीच लेन-देन का रिकॉर्ड मिलने पर यह कार्रवाई हुई। इसके बाद मप्र और महाराष्ट्र के कई ठिकानों पर छापे मारे गए। वे मजदूर और गरीब लोग लगे, जिनके नाम से फर्म बनाई गई। मामले में 5 जनवरी को जगदीश कानानी को मुंबई और इसके बाद मेहुल नामक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था। पूछताछ में मिली जानकारी और लिंक जोड़ते हुए सेंट्रल एक्साइज टीम को ठक्कर के बारे में पता चला। उसे पकडऩे के लिए टीम ने पांच दिन अहमदाबाद में रैकी की। मामले में 50 करोड़ की के्रडिट हासिल करने के सबूत मिल चुके हैं। आंकड़ा 200 करोड़ पार जाने की भी शंका है। ठक्कर ने स्वीकारा कि वह कई साल से फर्जीवाड़ा कर रहा है। जीएसटी से पहले वैट में इनपुट टैक्स के्रडिट के वेरिफिकेशन का सिस्टम नहीं होने पर आसानी से घोटाले को अंजाम देता था।
कागजों में चल रही थी कई फर्म फर्जीवाड़े में जीएसटी की खामियां भी उजागर हुई है। दरअसल, जिन मजदूरों व गरीबों के नाम पर फर्म रजिस्टर्ड बताई गई वे हकीकत में थीं ही नहीं। जीएसटी का रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन होने से कागजों पर ही कई फर्म बना ली गईं। ये फर्म अलग-अलग प्रदेशों में होने से क्रॉस वेरिफिकेशन भी नहीं हो पा रहा था। इन्हीं फर्म के बिल बनाकर खरीदी-बिक्री दिखाई जाती और पहले चुकाए गए टैक्स का हवाला देकर आसानी से इनपुट टैक्स के्रडिट ले लिया जाता।