शायर राहत इंदौरी ने जनता का सबसे पसंदीदा शेर ‘कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया’ से दिल जीत लिया। अपने शायराना तसव्वुर से सुनने वालों को तसव्वुफ की ओर ले जाते शौहरात वसीम बरेलवी ने भी इंदौर की दिली गहराइयों को छुआ। शोख अंदाज के अशआर पढक़र मुजफ्फर हनफी ने महबूब की जुल्फों को कुरेदती हुई गजलें पेश की, जिसे सुनकर कई उम्रदराज दर्शकों को अपना समय याद आ गया। बड़े शायरों को सुनने के लिए जनता को घंटों प्रतीक्षा करना पड़ी, लेकिन लोग आखिर तक कुर्सियों पर जमे रहे।
‘ये तो नामुमकिन है कि उसको न देखें हम, मगर अपनी आंख तो फोड़ी जा सकती है, ये जो छोटे-छोटे से जो मिसरे हैं न, इसमें से एक उम्र निचोड़ी जा सकती है,’ नदीम शाद ने अपने इस मिसरे के हर लफ्ज में जैसे तबस्सुम घोल दिया। तारिक कमर ने शेर पढ़ा, ‘अगर दरवेश हो तो लुकमा-ए-तर की हवस क्यों है, कलंदर हो तो शाहों से किनारा क्यों नहीं करते।’
‘बताएं आओ हम रुदाद-ए-सहरा बहुत है, हमारी भूख पर मत ध्यान दिजे, मगर सरकार हम प्यासे बहुत हैं’, अनवर जलालपुरी ने इन अल्फाजों के जज़्ब में सारे खित्ते को बांध लिया। तरन्नुम के प्रख्यात शायर अख्तर ने अपने शेर से राजनीति के ताने-बाने पर शब्द बाणों से हमला करते हुए शेर कुछ यूं पढ़ा- ‘वो अपने को बड़ा गिनने लगा है, अभी खुद भी जो गिनती में नहीं है, नईम अख्तर को भी मिलती वजारत मगर वो राजनीति में नहीं है।’ अख्तर ने अपनी अगली नज्म से भी खूब वाहवाही लूटी, जब उन्होंने कहा- ‘जहां तक मुझसे मतलब है जहान को वहीं तक मुझको पूछा जा रहा है, जमाने पर भरोसा करने वालों, भरोसे का जमाना जा रहा है।’
नेताओं पर बेबाकी से अपनी बात रखने वाले संपत सरल ने कहा कि इंदौर के एक भाजपाई नेता ने बापू का स्वतंत्रता संग्राम में हाथ होने से सीधा इन्कार किया था, वो बताना भूल गए कि वे राष्ट्रपिता नहीं बल्कि अपने स्वयं के बापू की बात कह रहे थे। प्रधानमंत्री की मन की बात से लेकर सुषमा स्वराज के डांस तक सरल ने कई मंत्रियों को आड़े हाथों लिया। इंदौर की जनता उनके हर व्यंग्य पर दिल खोलकर ठहाके लगाती रही। कार्यक्रम में रेनेसां समूह के चेयरमैन स्वप्निल कोठारी, राजीव नेमा, कौटिल्य एकेडमी के चेयरमैन श्रीद्धांत जोशी, विधायक सुदर्शन गुप्ता अतिथि के रूप में मौजूद थे।