रोहिणी कहती हैं कि नाटक करना और नाटक देखना मराठी भाषियों को बहुत पंसद है। यह शौक जैसे उनके खून में ही होता है। एेसा ही शौक और जुनून बंगाल में भी नजर आता है, इसीलिए एक बात अक्सर कही जाती है कि चार हिन्दीभाषी मिलेंगे तो पार्टी करेंगे पर चार मराठी भाषी मिलेंगे तो नाटक करेंगे। मराठी रंगकर्मी केवल नाटक के बूते ही सर्वाइव कर पाते हैं, जबकि हिन्दी में अभी यह स्थिति नहीं आई है। इसलिए हिन्दी के रंगकर्मी कुछ समय नाटक करने के बाद फिल्म या टीवी का रुख कर लेते हैं। मराठी में नाटकों के प्रति कलाकारों और दर्शकों का कमिटमेंट ज्यादा स्ट्रांग होता है।