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इंदौर

‘मेरी जिंदगी की जमा-पूंजी हैं एनएसडी के तीन साल’

अभिनेत्री रोहिणी हट्टंगड़ी से चर्चा

इंदौरApr 19, 2019 / 01:58 pm

हुसैन अली

indore

‘मेरी जिंदगी की जमा-पूंजी हैं एनएसडी के तीन साल’

इंदौर. हिन्दी-मराठी रंगमंच, टीवी और फिल्मों की जानी-मानी अभिनेत्री रोहिणी हट्टंगड़ी शुक्रवार शाम सानंद न्यास के मंच पर होने वाले नाटक ‘नट सम्राट’ में दर्शकों के सामने होंगी। इस मौके पर पत्रिका ने उनसे चर्चा की। रोहिणी नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की 1974 की पासआउट हैं। उनका कहना है कि नेशनल स्कूल ऑफ ड्ररमा में बिताए तीन साल वे कभी नहीं भूल सकती। वे तीन साल मेरी जिंदगी की जमा पूंजी है। उस वक्त एनएसडी के डायरेक्टर इब्राहिम अलकाजी थे और मैं खुद को खुशकिस्मत मानती हूं कि मुझे उनके जैसा गुरु मिला। अलकाजी ने रंगकर्मियों की एक पीढ़ी तैयार की। रंगमंच के लिए उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता। जब मैं एनएसडी गई तो जैसे मेरे जीवन की दिशा ही बदल गई। नाटक के बारे में मेरा कंसेप्ट ही बदल गया। अलकाजी कहते थे कलाकार को अपना दिमाग शार्प रखना चाहिए। एक्टर की नजर केवल सामने ही नहीं, चारों तरफ होना चाहिए। उन्होंने थिएटर का डिसीप्लीन सिखाया।
मैकेनिकल होने से बचना जरूरी : एक ही नाटक के कई शो होते हैं। कलाकार एक ही रोल को निभाते-निभाते इतना अभ्यस्त हो जाता है कि उसकी एक्टिंग मैकेनिकल हो जाती है। एक अच्छा कलाकार हमेशा यही कोशिश करता है कि वह मैकेनिकल होने से बचे। हर शो में वह कुछ नया दे पाए, यही उसका कौशल होना चाहिए। ६७ साल की उम्र में लगातार सक्रिय रहने पर उनका कहना है कि जिस काम में मन लगता है तो उसे करने में थकान नहीं होती, बल्कि ऊर्जा मिलती है। वैसे मैंने फिल्म और टीवी में काम बहुत कम कर दिया है पर रंगमंच से लगाव कभी छूटेगा नहीं।
फिल्मों में आ रहा है नया कंटेंट : एक समय था जब फिल्मों में श्याम बेनेगल, अजीज मिर्जा, बासु भट्टाचार्य, गोविंद निहलानी जैसे फिल्मकार एक साथ सक्रिय थे पर तब भी अच्छी फिल्में प्रदर्शित नहीं हो पाती थीं। मजबूरन उन्हें दूरदर्शन पर दिखाया जाता था पर अब एेसा नहीं है। अब कोई फिल्म अगर थिएटर में नहीं भी आ सके तो उसे इंटरनेट पर देखा जा सकता है, इसलिए फिल्मकार दूसरे तरीके से लोगों तक पहुंचता है। यही वजह है कि अब बहुत नए-नए विषयों पर फिल्में बन रही हैं जो कि अच्छा संकेत है।
चार मराठी मिलेंगे तो नाटक करेंगे
रोहिणी कहती हैं कि नाटक करना और नाटक देखना मराठी भाषियों को बहुत पंसद है। यह शौक जैसे उनके खून में ही होता है। एेसा ही शौक और जुनून बंगाल में भी नजर आता है, इसीलिए एक बात अक्सर कही जाती है कि चार हिन्दीभाषी मिलेंगे तो पार्टी करेंगे पर चार मराठी भाषी मिलेंगे तो नाटक करेंगे। मराठी रंगकर्मी केवल नाटक के बूते ही सर्वाइव कर पाते हैं, जबकि हिन्दी में अभी यह स्थिति नहीं आई है। इसलिए हिन्दी के रंगकर्मी कुछ समय नाटक करने के बाद फिल्म या टीवी का रुख कर लेते हैं। मराठी में नाटकों के प्रति कलाकारों और दर्शकों का कमिटमेंट ज्यादा स्ट्रांग होता है।

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