वक्ताओं ने राजनीतिक पार्टियों के समक्ष सवाल उठाया कि एेसी क्या मजबूरी है, जो अपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवार को टिकट देना पड़ते हैं। पार्टियां खुद गाइड लाइन बनाएं और उसी के अनुसार उम्मीदवार उतारें। परिचर्चा में वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रीतमलाल दुआ, शिक्षाविद प्रो. बीके निलोसे, नगरीय नियोजन विशेषज्ञ अजीतसिंह नारंग, एसएल शर्मा, एसएस पाल, इंजीनियर महेश राजवैद्य, मुकेश अग्रवाल, मनीष सिंह राठौर, विमल कोरिया, डॉ. पी गंधे, दीपक भंडारी, मालासिंह ठाकुर, एसकेएस कुमार, भारती मंडोले, हितेश जैन, रोटेरियन गजेंद्र नारंग आदि मौजूद रहे।
जाति या धर्म के आधार पर न हो चयन -एआइएमपी के आलोक दवे ने कहा, राजनीतिक दलों को उम्मीदवार की राष्ट्रीयता, देश व समाज के प्रति जिम्मेदारी जैसे मुद्दों पर समझ को परखना चाहिए।
-प्रो. एसएल गर्ग ने कहा, चयन जातिवाद या धर्म आधारित न हो। शिक्षित व कार्य करने वाला उम्मीदवार लाएं, जो अपने क्षेत्र व देश की बात संसद में रख सके। -प्रो. उदय जैन ने कहा, पार्टियों को अपने एजेंडे के अनुरूप अच्छे व जुझारू लोगों को टिकट देना चाहिए।
-अभ्यास मंडल के अशोक कोठारी ने कहा कि उम्मीदवार चरित्रवान हो, जो स्थानीय जरूरतों को समझे। बाहुबली प्रत्याशी खड़ा नहीं करेंगे, तो राजनीति स्वत: ही स्वच्छ हो जाएगी। -सुनील माकौड़े ने कहा, राजनीति जिम्मेदारी वाला पेशा है। इसमें दलों को आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को आगे नहीं लाना चाहिए।
-प्रो. रमेश मंगल ने कहा, स्वच्छ राजनीति का अर्थ आदर्शों पर सिद्धांतों पर चलना होता है। एक उम्मीदवार किस वर्ग या समाज से है, मायने नहीं रखता है। -समाजसेवी भारती मंडोले ने कहा, महिलाओं को कागजों पर तो 50 फीसदी अवसर दे दिया, इसे धरातल पर लाने की जरूरत है।