सामाजिक कार्यकर्ता तपन भट्टाचार्य की सीनियर एडवोकेट आनंद मोहन माथुर के माध्यम से दायर याचिका में मुद्दा उठाया है कि पतंजलि को नियमों को ताक पर रखकर जमीन दी गई है। 27 मार्च 2017 को कंपनी ने उक्त जमीन पर कब्जा भी ले लिया है। जमीन देने के लिए कोई टेंडर नहीं निकाले गए। 25 लाख रुपए एकड़ के हिसाब से दी गई जमीन के साथ ही राज्य सरकार ने एक ऐलान भी किया है कि यहां बनने वाले उत्पादों की बिक्री कॉपरेटिव सोसायटी और कंट्रोल की दुकानों से भी की जाएगी, जो गलत है। प्रदेश में और भी कंपनियां आयुर्वेदिक प्रोडक्ट बनाती हैं, तो उन्हें जमीन देने के लिए टेंडर निकालकर शामिल क्यों किया?। इस मामले में ट्रायफेक जवाब पेश कर चुकी है। उनका कहना है सरकार को किसी भी औद्योगिक इकाई को कितनी भी जमीन देने के अधिकार हैं।
कोर्ट के फैसले को सरकार ने नहीं दी चुनौती हुकमंचद मिल मजदूरों की हाइ कोर्ट में दायर याचिका पर सोमवार को सुनवाई हुई। मई में कोर्ट ने मिल की जमीन का मालिकाना हक नगर निगम को देने का निर्णय दिया था। माना जा रहा था इस निर्णय को सरकार युगल पीठ में चुनौती देगी, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है। जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की एकल पीठ ने तीन सप्ताह बाद अगली सुनवाई के आदेश दिए हैं। इसमें मजदूरों के कुछ आवेदनों पर सुनवाई होगी।