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इंदौर

गर्भवतियों को यहां से वहां चक्कर काटने में ही लग रहे तीन दिन, इस तरह हो रही हैं परेशान, कैसे मिले इलाज

-जिला अस्पताल में काउंटर, रैन बसेरे में ओपीडी, डीईआइसी बिल्डिंग में लैब
-मलबे-कीचड़ के बीच इन इमरतों में भटक रहे मरीज

इंदौरSep 18, 2019 / 12:18 pm

रीना शर्मा

गर्भवतियों को यहां से वहां चक्कर काटने में ही लग रहे तीन दिन, इस तरह हो रही हैं परेशान, कैसे मिले इलाज

गर्भवतियों को यहां से वहां चक्कर काटने में ही लग रहे तीन दिन, इस तरह हो रही हैं परेशान, कैसे मिले इलाज

300 बिस्तर के नए प्रोजेक्ट के लिए जिला अस्पताल की पुरानी जर्जर इमारत को तोड़ दिया गया, लेकिन मरीजों की सुविधा के लिए कोई प्लॉनिंग नहीं की गई। इससे यहां आने वाले मरीज परेशानियों से जूझ रहे हैं। गर्भवतियों को सबसे अधिक भटकना पड़ रहा है। उनका इलाज पास ही रैन बसेरे की इमारत में किया जा रहा है। इसके लिए उन्हें 720 मीटर पैदल चलकर चार कोनों में बने कक्षों के चक्कर काटना पड़ रहे हैं। वह भी मलबे और कीचड़ के बीच से। हालत यह है कि यहां व्हीलचेयर और स्ट्रेचर तक नहीं चलाए जा सकते। गंभीर मामलों में मरीजों को पीसी सेठी या एमवाय अस्पताल भेजने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है।
रणवीरसिंह कंग@इंदौर. लंबे समय तक कागजों में उलझे रहने के बाद जिला अस्पताल की इमारत को तोडऩे का काम गत दिनों शुरू किया गया। पश्चिम क्षेत्र में लाखों की आबादी के लिए कोई बड़ा शासकीय अस्पताल नहीं होने के कारण महिला रोग व प्रसूती विभाग, टीकाकरण, ओपीडी, पीएम रूम आदी सुविधाएं यहां जारी रखी गर्ईं। रैन बसेरे में महिला रोग विभाग और डीईआईसी बिल्डिंग में पैथोलॉजी, सोनोग्राफी, टीकाकरण, दंत रोग, मानसिक रोग व शिशु रोग विभाग की ओपीडी चलाई जा रही है। मुख्य द्वार के पास जर्जर भवन में दो खिडक़ी से पर्ची काउंटर चलाया जा रहा है। सामान्य ओपीडी पुराने भवन के अगले हिस्से में लगाई जा रही है।
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मरीजों ने बताया, पर्ची काउंटर खुलने से दो-तीन घंटे पहले लंबी कतार लग जाती है। 9 बजे लाइन में लगे तो दो घंटे बाद नंबर आता है। यहां से महिला रोग विभाग में आधे से एक घंटा लाइन में खड़ा होना पड़ता है। डॉक्टर जांच के लिए लिखते हैं तो उसकी पर्ची कटवाने दोबारा काउंटर पर जाना पड़ता है। इसकी कोई अलग व्यवस्था नहीं है। फिर एक-दो घंटे लाइन में लगना पड़ता है। यदि गर्भवती के साथ परिजन नहीं है, तो उन्हें खुद लाइन में लगना पड़ता है। इसमें ही 1 बज जाती है। इसके बाद पैथोलॉजी में नमूने नहीं लिए जाते। अगले दिन नमूने देने पड़ते हैं और तीसरे दिन रिपोर्ट मिलती है। इसके बाद डॉक्टर को दिखाने पर दवाएं मिलती हैं। यहां सामान्य सोनोग्राफी की सुविधा तो है, लेकिन अल्ट्रासाउंड के लिए बाहर जांच करानी पड़ती है।
गर्भवती इस तरह होती हैं परेशान, उनके पास कोई चारा भी नहीं

गर्भवतियों को यहां से वहां चक्कर काटने में ही लग रहे तीन दिन, इस तरह हो रही हैं परेशान, कैसे मिले इलाज
1.पर्ची काउंटर पर लंबी लाइन में दो से तीन घंटे में नंबर आता है।
2.चेकअप के लिए 100 मीटर दूर रैन बसेरे में आती हैं।
3.पर्ची काउंटर जांच की पर्ची के लिए दोबारा काउंटर जाती हैं।
4. जांच के लिए 100 मीटर दूर डीईआईसी बिल्डिंग में जाती हैं।
5. सैंपल यूरिन सैंपल देने 100 मीटर चलकर शौचालय जाती हैं।
6. सैंपल देने 100 मीटर चलकर डीईआईसी बिल्डिंग पहुंचती हैं।
7. रिपोर्ट दिखाने 120 मीटर चलकर रैन बसेरे में फिर डॉक्टर के पास जाती हैं।
8. दवा लेने के लिए फिर 100 मीटर चलकर दवा वितरण कक्ष जाती हैं।
चक्कर काटते-काटते बढ़ गया बीपी, बुजुर्गों के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं

पीपल्यापाला निवासी मनोहर पारस (64) ने बताया, मैं ओपीडी में 12 बजे पहुंचा। काउंटर पर भारी भीड़ मिली। यहां सीनियर सीटीजन व विकलांगों के लिए बोर्ड तो है, लेकिन वहां पुरुषों की लंबी लाइन थी।
सहयोग नगर निवासी गर्भवती आफरीन बी ने बताया, चार बार लाइन में लगने और कई मीटर चलने से ब्लड प्रेशर बढ़ गया। डॉक्टर ने बैठने को कहा और पानी दिया। वे बताती हैं, मैं सुबह 9 बजे अस्पताल पहुंची, इस सब में ही एक बज गई। पैथोलॉजी पर अगले दिन आने को कहा। आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि निजी अस्पताल में इलाज कराएं, आसपास कोई और सरकारी अस्पताल भी नहीं है। यहां सीजेरियन डिलेवरी की व्यवस्था नहीं होने से पीसी सेठी या एमवाय अस्पताल भेज दिया जाता है।
कीचड़ और मलबे में चलना मुश्किल

गीता नगर में रहने वाली शरीफा बी परिवार की दो महिलाओं को लेकर अस्पताल पहुंचीं। उन्होंने बताया, लाइन में दो घंटे से ज्यादा देर खड़े रहने के बाद नंबर आया। गर्भवती लंबी कतार में परेशान हो जाती हैं इसलिए मैं साथ आई हूं। परिसर में कीचड़ और मलबे के कारण चलना मुश्किल है।
-प्रोजेक्ट का काम शुरू होने के कारण जगह की कमी है। हमारी कोशिश है कि अस्पताल बंद नहीं किया जाए। सभी सुविधाओं को अस्थाई निर्माण कर एक लाइन में तैयार करने का प्रस्ताव है।
डॉ. संतोष वर्मा, सिविल सर्जन

-जिला हॉस्पिटल की व्यवस्थाओं को अलग-अलग जगह पर शिफ्ट किया गया है। शुरुआती व्यवस्था की गई है। इसकी समीक्षा करेंगे। प्रयास करेंगे कि मरीजों को बेहतर इलाज मिले।
लोकेश कुमार जाटव, कलेक्टर

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