भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही पार्टी के बड़े दिग्गज नेताओं का विशेष प्रेम प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहलाने वाले इंदौर से हो ही जाता है। इस मोह में भाजपा के संगठन महामंत्री भी नहीं बचते हैं, जबकि अधिकांश तो संघ प्रचारक होते हैं। यह परंपरा दो-तीन दशक से चली आ रही है, जब कृष्णमुरारी मोघे अविभाजित मध्यप्रदेश भाजपा के संगठन महामंत्री थे।
बाद में कप्तानसिंह सोलंकी बने। उन्होंने भी यहीं किया। दो नंबरी नेताओं से विशेष प्रेम था, जिनके कहने पर डॉ. उमाशशि शर्मा को विटो कर महापौर का टिकट दिया। उस समय सांसद सुमित्रा महाजन, विधायक लक्ष्मणसिंह गौड़ और उषा ठाकुर ने इस्तीफे की पेशकश तक कर दी थी।
बाद में माखनसिंह और अरविंद मेनन के दौर में भी यह सिलसिला कायम रहा। अब जब सुहास भगत संगठन महामंत्री हैं, तब भी यही हालात एक बार फिर बन गए हैं। इंदौर के हर मामले में भगत का सीधा हस्तक्षेप हो गया है। सांसद नंदकुमार सिंह चौहान जब तक प्रदेश अध्यक्ष थे, तब तक भगत की एंट्री नहीं हो पाई थी। चौहान आए दिन इंदौर दौरे पर रहते थे।
कोई भी फैसला होता था, तब वे सबसे पहले अपनी राय पेश कर देते थे। ऐसे में भगत को मजबूरी में दूरी बनाकर चलना पड़ती थी। कई मुद्दे ऐसे थे, जिनकी वजह से दोनों ही नेताओं में नहीं बनी। बताते हैं कि भगत ने अपनी इंदौर में रुचि प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह को बता दी है। उन्हें इशारा भी कर दिया गया है कि आपको यहां के मामलों में सीधे हस्तक्षेप नहीं करना है। यही वजह है कि सिंह भी इंदौर की बात आती है तो वे दूरी बनाना शुरू कर देते हंै।
एक वजह ताई और भाई भी
गौरतलब है कि इंदौर का विवाद भोपाल में भी नहीं सुलझता है और बात दिल्ली तक पहुंचती है। सांसद सुमित्रा महाजन लोकसभा स्पीकर हैं तो विधायक कैलाश विजयवर्गीय पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव। दोनों ही नेताओं की आपस में पटरी नहीं बैठती है। हालांकि कुछ समय से दोनों एक दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं। सिंह के इंदौर से दूरी बनाने की एक बड़ी वजह दोनों नेता भी हंै। भले ही राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की गुड लिस्ट में हों, लेकिन किसी भी विवाद में वे पडऩा नहीं चाहते।
गौरतलब है कि इंदौर का विवाद भोपाल में भी नहीं सुलझता है और बात दिल्ली तक पहुंचती है। सांसद सुमित्रा महाजन लोकसभा स्पीकर हैं तो विधायक कैलाश विजयवर्गीय पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव। दोनों ही नेताओं की आपस में पटरी नहीं बैठती है। हालांकि कुछ समय से दोनों एक दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं। सिंह के इंदौर से दूरी बनाने की एक बड़ी वजह दोनों नेता भी हंै। भले ही राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की गुड लिस्ट में हों, लेकिन किसी भी विवाद में वे पडऩा नहीं चाहते।