एसोचैम के सेक्रेटरी जनरल डीएस रावत ने कहा कि र्इ-कॉमर्स कंपनियों द्वारा किसी उत्पाद पर दी जा रही छूट वाणिज्यिक फैसला है और इसे कंपनियों पर ही छोड़ देना चाहिए।
नई दिल्ली•Aug 02, 2018 / 08:09 pm•
Saurabh Sharma
एसोचैम की केंद्र सरकार को एक आैर चेतावनी, केंद्र सरकार की नीति तबाह कर सकती है र्इ-काॅमर्स मार्केट
नई दिल्ली। र्इ-कॉमर्स क्षेत्र पर जरूरत से ज्यादा कठोर नियंत्रण इस क्षेत्र को खत्म कर सकता है और कीमतों पर सरकारी नियंत्रण से इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा मिलेगा। यह आशंका देश में उद्योगों की प्रतिनिधि संस्था एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एसोचैम) ने जताया है। एसोचैम के सेक्रेटरी जनरल डीएस रावत ने कहा कि र्इ-कॉमर्स कंपनियों द्वारा किसी उत्पाद पर दी जा रही छूट वाणिज्यिक फैसला है और इसे कंपनियों पर ही छोड़ देना चाहिए।
केंद्र सरकार लाने जा रही है नर्इ नीति
ऑनलाइन शॉपिंग पर नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार ने र्इ-कॉमर्स नीतियों का एक मसौदा तैयार किया है। इस मसौदे को अमेजॉन, फ्लिपकॉर्ट जैसी सभी र्इ-कॉमर्स कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा के लिए साझा किया जा चुका है। मसौदे के मुताबिक र्इ-कॉमर्स कंपनियों द्वारा उत्पादों पर भारी छूट पर सरकार द्वारा नजर रखे जाने का प्रस्ताव है। इसके अलावा भारी छूट को एक निश्चित तारीख तक ही उपलब्ध कराया जाए। वर्तमान में कंपनियां इसे कुछ और दिन करके आगे खिसकाती रहती हैं। मसौदे में प्रस्तावित नीतियों के दायरे में पॉलिसी बाजार जैसी वित्तीय सेवाएं देने वाली साइट्स को भी लाया जाएगा। कीमतों में छूट पर नियंत्रण के अलावा सरकार ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा व शिकायतों के निपटारे, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआर्इ), डेटा स्टोरेज और छोटे उद्योगों के विलय के मुद्दों पर नियम बनाना चाहती है। इसके अलावा एक नियामक की भी नियुक्ति की जाएगी।
2 लाख करोड़ का र्इ-कॉमर्स बाजार
देश में तेजी से र्इ-कॉमर्स बाजार बढ़ता जा रहा है। वर्तमान में यह 1.71 लाख करोड़ रुपए का है, जिसके अगले दशक तक बढ़कर 13.72 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना व्यक्त की गई है। देश में तेजी से बढ़ते इ-कॉमर्स बाजार को देखते हुए विदेशी कंपनियां भी यहां भारी निवेश के लिए आकर्षित हो रही हैं।
अमरीका से राजनयिक युद्ध के आसार
र्इ-कॉमर्स क्षेत्र में प्रस्तावित मसौदे पर अमरीका से राजनयिक युद्ध के आसार बन सकते हैं क्योंकि अमेजन और वाॅलमार्ट अमरीकी सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप की सिफारिश कर सकती हैं। ऐसा होने की स्थिति में अमरीकी अधिकारियों और भारत सरकार के बीच मुद्दे को उच्च स्तरीय चर्चा हो सकती है। इन कंपनियों का कहना है कि इस मसौदे के तहत विदेशी कंपनियों को स्टॉक रखने का अधिकार नहीं दिया गया है। ये कंपनियां नियामक के गठन को लेकर भी सशंकित हैं और उनका कहना है कि इससे उनके फैसले लेने की क्षमता प्रभावित होगी।
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