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राष्‍ट्रपति ने कहा, बढ़ती महंगाई अभी भी हमारी बड़ी चिता 

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर पर संतोष व्यक्त करते हुए मंगलवार को खाद्य पदार्थों की बढ़ती महंगाई पर आगाह किया और कहा कि इस पर ध्यान देने की जरूरत है।

Nov 08, 2016 / 07:48 pm

umanath singh

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pranab mukherjee

नई दिल्ली: राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर पर संतोष व्यक्त करते हुए मंगलवार को खाद्य पदार्थों की बढ़ती महंगाई पर आगाह किया और कहा कि इस पर ध्यान देने की जरूरत है। मुखर्जी ने निर्यात ऋण गारंटी उपलब्ध कराने वाली सरकारी कंपनी ईसीजीसी लिमिटेड के हीरक जयंती समारोह के उद्घाटन सत्र में कहा कि वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्थाएं अलग-अलग कारणों से संकट से गुजर रही हैं, लेकिन भारतीय अर्थव्यव्था ने अपनी रफ्तार बनाये रखी है।
भारतीय अर्थव्यवस्था 7.6 प्रतिशत की दर से विकास कर रही

विकसित देश वर्ष 2008 की मंदी, यूरो क्षेत्र संकट, यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर आने और प्रवासियों के आगमन जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। विदेश व्यापार को नियंत्रित करने के लिए गैर व्यापारिक उपाय अपनाए जा रहे हैं। इसके अलावा भू-राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक मंदी, युद्ध और आतंकवाद से भी विश्व व्यापार बाधित हो रहा है। उन्होंने कहा कि इन बाधाओं के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था 7.6 प्रतिशत की दर से विकास कर रही है।
पिछले वर्ष ग्रोथ रेट 7.2 प्रतिशत रहा था

पिछले वर्ष यह आंकड़ा 7.2 प्रतिशत रहा था। यह अन्य सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में अग्रणी बनी हुई है। इस साल मानसून के सामान्य रहने की उम्मीद है, जिससे आर्थिक वृद्धि दर को और गति मिलेगी। हालांकि, पिछले दो साल में मानसून की बारिश सामान्य से कम रहने से कृषि क्षेत्र के लिए संकट की स्थिति रही। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था दबाव में है। उन्होंने कहा कि इनके बावजूद भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बाहरी कारक स्थिर बने हुए हैं और सरकार वित्तीय समावेशन के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन, खाद्य पदार्थों की कीमतों पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
खाद्य पदार्थों की कीमतों की प्रवृत्ति पर सतर्क रहना चाहिए

राष्ट्रपति ने कहा कि यह हमारी अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत है, लेकिन हमें खाद्य पदार्थों की कीमतों की प्रवृत्ति पर सतर्क रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि वैश्विक मंदी के कारण निर्यात की मांग बढ़ाना एक चुनौती बनी हुई है। इससे निपटने के लिए घरेलू उद्योगों को बेहतर आधारभूत ढांचा और नियमन देना चाहिए, जिससे वे ज्यादा प्रतिस्पर्धी बन सकें। उन्होंने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पहले की तुलना में ज्यादा जटिल हो गयी है। सभी अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे पर निर्भर हैं। यूरोप और अमेरिका की अर्थव्यवस्थाएं मंदी की चपेट में हैं और विश्व व्यापार चीन तथा भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं पर निर्भर हो गया है।

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