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इटारसी

डीपीसी बोल रहे हैं जब गिरने लगेंगे तब बनवाएंगे स्कूल नया भवन

लहराती खपरैल की छत, तिरछी होती दीवारेंखतरे में नौनिहाल

इटारसीJul 15, 2019 / 07:35 pm

krishna rajput

Badhal school building, students in danger, condition of government schools, Deshbandhu, Sardar Patelpura, Gandhinagar, Itarsi

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इटारसी. सरकारी स्कूलों में आज भी ऐसे भवन मौजूद हैं जो बेहद पुराने और कच्चे हैं। इन स्कूल भवनों की खपरैल की छत लहरा रही है, दीवारें तिरछी हो रही है। बच्चों के लिए ये भवन खतरा बन चुके हैं। ऐसे अधिकारियों का कहना है जब गिरने की स्थिति में आएग तब नया भवन बनाएंगे।
हर बारिश का मौसम स्कूलों के कच्चे भवनों के लिए खतरा लेकर आता है। शहर में ऐसे स्कूल मौजूद हैं जिसमें कच्चे भवन हैं। ऐसे कच्चे भवनों वाले स्कूलों में ग्राउंड लेवल पर हालात देखे तो जो स्थिति सामने आई बेहद डरावनी है।

स्कूल- १
पुरानी इटारसी में सरदार पटेलपुरा प्राथमिक स्कूल में कच्चा भवन है। इस भवन की दीवारें तिरछी होने लगी है और ऊपर खपरैल की छत है उसकी लकडिय़ां सड़ चुकी है जिससे स्कूल की छत लहराती हुई दिखाई देती है। यह भवन खतरा बन गया है। इस स्कूल में ज्यादा बारिश होने पर बच्चे नहीं बैठते हैं लेकिन जब बारिश नहीं होती तो इसी में क्लास लगती है।

स्कूल- २
गांधीनगर प्राथमिक स्कूल भी कच्चे भवन में ही लगता है। यहां एक हॉल और तीन रूम है। यहां बच्चों की संख्या कम है इसलिए दो रूम को खाली छोड़ दिया गया है और एक हॉल में ही सारी क्लास लगा ली जाती है लेकिन खतरा तो बना हुआ है। इस भवन के डैमेज होने पर हॉल वाला हिस्सा भी गिर सकता है।

स्कूल- ३
खेड़ा का मिशनखेड़ा प्राथमिक स्कूल ९० साल पुराना है। इस स्कूल के कच्चे भवन में स्कूल लगता है। खास बात यह है इस स्कूल में संख्या भी अच्छी है इसलिए भवन सभी रूमों में कक्षाएं लगती है। इस स्कूल भवन की छत से भी पानी टपकता है। इस स्कूल की छत को शिक्षकों ने अपने प्रयासों से ठीक भी कराया गया हालांकि जानकारी मिली कि मार्च १९ में भवन निर्माण शुरू हुआ था जो अभी तक पूरा नहीं हुआ है।
स्कूल- ४
रेस्ट हाउस के सामने देशबंधुपुरा प्राथमिक शाला है। इस स्कूल का भवन कच्चा है इसी भवन में कक्षाएं लगती है। इसके खपरैल की छत पूरी तरह से डैमेज है। बारिश में इतना पानी टपकता है कोई स्थान नहीं बचता है। यह भवन भी बेहद कमजोर और पुराना हो चुका है। ऐसे में इस भवन में भी बच्चों की कक्षाएं संचालित होना खतरे से खाली नहीं है।

यह है समस्याएं
– कच्चे खपरैल की छत का मेंटनेंस करना मुश्किल होता है क्योंकि अब ऐसे मजदूर नहीं मिलते है खपरैल की छत को अच्छे से सुधार दें। पहले कच्चे भवनों का चलन था तो आसानी से खपरैल की छत का मेंटनेंस करने के लिए पारंगत मजदूर मिल जाते थे।
– स्कूलों के पास मेंटनेंस के लिए इतना बजट भी नहीं होता है कि वह हर साल इन भवनों का मेंटनेंस करा सकें।
जो स्कूल जीर्ण-शीर्ण हो चुके और गिरने की स्थिति में आ गए उन स्कूल भवनों खंडहर घोषित करके नए भवनों का प्रपोजल भेजा जाता है। ऐसे कोई स्कूल होंगे तो प्रापोजल भेजा जाएगा।
एसएस पटेल, जिला परियोजना समन्वयक होशंगाबाद

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