विधि-विधान– कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन साल भर के धार्मिक कृत्यों के लिये कुश एकत्र लेते है। प्रत्येक धार्मिक कार्यों के लिए कुशा का इस्तेमाल किया जाता है। शास्त्रों में भी दस तरह की कुशा का वर्णन प्राप्त होता है, जिस कुशा का मूल सुतीक्ष्ण हो, इसमें सात पत्ती हो, कोई भाग कटा न हो, पूर्ण हरा हो, तो वह कुशा देवताओं तथा पित्त, दोनों कृत्यों के लिए उचित मानी जाती है। कुशा तोड़ते समय ‘हूं फट्’ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
महत्व– अघोर चतुर्दशी तिथि के दिन विशेष रूप से पितरों के लिये किए जाने वाले कार्य किये जाते है। इस दिन पितरों के लिये व्रत और अन्य कार्य करने से पितरों की आत्मा को शान्ति प्राप्त होती है। शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य का महत्त्व है। विधि के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष में चलने वाला पन्द्रह दिनों के पितृ पक्ष का शुभारम्भ भादों मास की अमावस्या से ही हो जाती है।