दशहरा चल समारोह मुख्यतः तीन पत्ती से निकलने वाले को माना जाता है। जहां नगर जेठानिया जेठानी और व्रत महाकाली के साथ गोविंद गंज रामलीला चल समारोह शामिल होता है। यहां देखने के लिए बहुत कुछ होता है। अपार जन समुदाय माता के जयकारों के बीच में शामिल होता है। इसके अलावा शहर में उपनगरीय क्षेत्र अधारताल गढ़ा गोरखपुर रांझी गोकलपुर खमरिया सुहागी शाहपुरा भेड़ाघाट मैं भी चल समारोह निकाले जाते हैं। इन सब में देखने लायक यह होता है कि स्थानीय होने के बावजूद अपनी लोकप्रियता बरकरार रखे हुए हैं।
बंगाल की काली पूजा की बात की जाए तो जबलपुर संस्कारधानी में बंग बंधुओं द्वारा निकाले जाने वाला बंगाली दशहरा खासा पसंद किया जाता है। इसमें एक दर्जन से अधिक प्रतिभा शामिल होती हैं। जो नर्मदा तट ग्वारीघाट किनारे विसर्जन कुंड पर पहुंचकर विसर्जित की जाती है। दशहरा पर यहां एक और खासियत है रावण दहन का। पंजाबी दशहरा 1 दिन पहले मना लिया जाता है। इस बार ग्वारीघाट स्थित आयुर्वेद कॉलेज के मैदान में यह आयोजन होगा। जहां 65 फीट ऊंचा रावण का पुतला दहन किया जाएगा। इसके अलावा अन्य क्षेत्र में भी रावण दहन का आयोजन होता है। इसलिए कहा जाता है कि दशहरा देखना हो तो जबलपुर का दशहरा देखो। यहां रात में जागते हैं और किसी को आंखों में नींद नहीं होती बस होता है तो उत्साह उमंग और उल्लास।