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जबलपुर

dussehra kab hai 2017 me – MP के इस शहर से जेठानी का रिश्ता रखती हैं दुर्गा मां

नगर महारानी भी अपने आप में ख्यातिलब्ध हैं। इन रिश्तों के चलते ही जबलपुर के दशहरें की पहचान पूरे देश में है

जबलपुरSep 29, 2017 / 03:24 pm

Lalit kostha

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जबलपुर। दशहरा शनिवार 30 सितंबर को पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाएगा। जबलपुर का दशहरा प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में भी अपनी एक अलग पहचान रखता है। यहां कुछ रोचक तत्व हम आपको बताने जा रहे हैं। जिन्हें शायद ही आप जानते होंगे। संस्कारधानी जबलपुर में एक ऐसी देवी प्रतिमाएं भी है रखते स्थापित होती हैं जिनका आपस में रिश्तेदारियां हैं। यह नगर जेठानी भी हैं नगर महारानी और नगर सेठानी भी हैं। एक परिवार में जब एक से ज्यादा बहुएं होती हैं तो उनके बीच देवरानी-जेठानी का रिश्ता होता है, लेकिन संस्कारधानी जबलपुर एकलौता ऐसा शहर है, जहां मातारानी के अपने रिश्ते हैं। यहां नगर जेठानी है तो दो-दो सेठानियां भी हैं। नगर महारानी भी अपने आप में ख्यातिलब्ध हैं। इन रिश्तों के चलते ही जबलपुर के दशहरें की पहचान पूरे देश में है।

ऐसे पड़े नाम


नगर जेठानी – पिछले सात दशकों से इनकी स्थापना कोष्टा समाज द्वारा बधैयापुरा स्थित कोष्टी मंदिर में की जा रही है। संभवत: यह शहर की पहली व एकमात्र ऐसी प्रतिमा है, जो समाज विशेष द्वारा स्थापित की जाती है। इनके पूजन करने कोष्टा समाज का हर परिवार मंदिर पहुंच रहा है। शहर से बाहर रहने वाले लोग विशेषतौर पर छुट्टी लेकर यहां आते हैं। जब माता विसर्जन चल समारोह में शामिल होती हैं, तब सकल कोष्टा समाज वहां मौजूद रहता है। इसी भव्यता और समाज संख्या को देखते हुए इन्हें जेठानी का नाम दिया गया है।


नगर सेठानियां – 150 सालों से अधिक समय से मां सुनरहाई और नुनहाई की स्थापना हो रही है। इनकी पहचान भक्तों द्वारा असल हीरे, मोती, सोना चांदी से किया जाने वाला शृंगार है। मां सुनरहाई व नुनहाई आज की तारीख में करोड़ों रुपयों के हीरे मोती से सुसज्जित होती हैं। जिनमें दर्शनों को जनसैलाब उमड़ पड़ता है। यही वजह है कि इन्हें सेठानियां कहा जाता है।


नगर महारानी- नगर महारानी के बिना शहर दशहरे की कल्पना व भव्यता का बखान नहीं किया जा सकता। ऐसे तो बहुत की महाकाली की प्रतिमाएं शहर में जगह-जगह स्थापित की जाती हैं, लेकिन निरंग काली या वृहत महाकाली के दर्शन किए बिना कोई भक्त नहीं रहता। ये पूरे दशहरा चल समारोह की शान कही जाती हैं, इनके गुजरते ही दशहरे की भीड़ खत्म होने लगती है। इसलिए गढ़ा फाटक में विराजमान होने वाली वृहत महाकाली को नगर महारानी के नाम से पुकारा जाता है।

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