यह है मामला-
अभियोजन के अनुसार 20 अक्टूबर 2013 को भोपाल एसटीएफ को शिकायत मिली। इसमें कहा गया कि कौशल सारस्वत नामक व्यक्ति मप्र राज्य ओपन बोर्ड की दसवीं व बारहवीं कक्षाओं की फर्जी मार्कशीट बना कर तगड़ी रकम में बेच रहा है। सारस्वत को गिरफ्तार करने पर उसके कब्जे से बड़ी संख्या में फर्जी मार्कशीट, सटिफिकेट, रबर, स्टांप व अन्य सामग्री बरामद की गई थी। उससे खुलासा हुआ था कि बोर्ड कर्मी देवेंद्र गुप्ता, प्रदीप बैरागी, अखिलेश चौहान, सहित ओन बोर्ड के तत्कालीन डायरेक्टर राजेंद्र प्रसाद व असिस्टेंट डायरेक्टर राजेश उपाध्याय इस साजिश में शामिल थे। डायरेक्टर राजेंद्र प्रसाद ने अन्य आरोपियों संदीप राने, संगीता राने, गायत्री नेगी, विनोद पांचाल, बल्देव पंचाल के बारे में भी बताया।
व्हाइटनर लगाकर की गई ओवरराइटिंग
जांच में सामने आया कि डायरेक्टर राजेंद्र प्रसाद सहित अन्य आरोपित छात्रों की उत्तरपुस्तिकाओं की काउंटर फॉइल, अंकसूचियों में व्हाइटनर के प्रयोग और ओवर राइटिंग के जरिए बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा किया गया। बोर्ड कार्यालय से हजारों की संख्या में ऐसी उत्तरपुस्तिकाएं, अंकसूचियां भी बरामद हुईं। एसटीएफ ने भादंवि की धारा 420,467,468,471,477,120 बी के तहत आरोपियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर जिला अदालत भोपाल में पेश किया। 6 मई 2015 को एडीजे भोपाल की अदालत ने उक्त धाराओं के तहत पेश चार्जशीट पर संज्ञान लेते हुए आरोपियों के खिलाफ आरोप तय कर दिए। इसी आदेश को याचिका में आरोपित राजेंद्र प्रसाद की ओर से चुनौती दी गई थी।
जांच में सामने आया कि डायरेक्टर राजेंद्र प्रसाद सहित अन्य आरोपित छात्रों की उत्तरपुस्तिकाओं की काउंटर फॉइल, अंकसूचियों में व्हाइटनर के प्रयोग और ओवर राइटिंग के जरिए बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा किया गया। बोर्ड कार्यालय से हजारों की संख्या में ऐसी उत्तरपुस्तिकाएं, अंकसूचियां भी बरामद हुईं। एसटीएफ ने भादंवि की धारा 420,467,468,471,477,120 बी के तहत आरोपियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर जिला अदालत भोपाल में पेश किया। 6 मई 2015 को एडीजे भोपाल की अदालत ने उक्त धाराओं के तहत पेश चार्जशीट पर संज्ञान लेते हुए आरोपियों के खिलाफ आरोप तय कर दिए। इसी आदेश को याचिका में आरोपित राजेंद्र प्रसाद की ओर से चुनौती दी गई थी।
धारा 197 के खिलाफ नहीं-
आरोपित की ओर से तर्क दिया गया कि वह सरकारी अधिकारी है। लिहाजा उसके खिलाफ चार्जशीट पेश करने से पूर्व सरकार से मंजूरी लेना जरूरी था। जो नहीं ली गई। शासकीय अधिवक्ता एसडी खान ने इसका विरोध करते हुए कहा कि उपलब्ध साक्ष्यों से स्पष्ट है कि आरोपी ने साजिश के तहत अंकसूचियों, उत्तरपुस्तिकाओं में फर्जीवाड़ा किया। यह अपराध है, सरकारी काम नहीं।