फिल्मी धुनों की बजाए कबीर और लोकगीत को अपनाया
बैंड में अन्य लड़कियां भी गिटार, हारमोनियम, ढोलक, कांगो, ढपली जैसे वाद्य यंत्र बजाने में पारंगत हैं, जिससे अत्यंत मधूर और सुरीली धुन निकलती है. इन कलाकारों ने जिस तरीके का प्रयोग किया है, वैसा प्रयोग शायद ही किसी ने किया हो. सभी कबीर के दोहे, छत्तीसगढ़ी और बुंदेलखंडी लोक गीतों को अपनी धुन में पिरोते है. इस बैंड के एक महत्वपूर्ण सदस्य देवेंद्र ग्रोवर बताते हैं कि, फिल्मी गीतों पर तो सब जगह काम हो रहा है, लेकिन हमारी अपनी सदियों पुरानी संगीत की विरासत बैंड में नजर नहीं आ रही है. इसलिए इस बैंड के जरिए पारंपरिक संगीत को स्थापित करने की कोशिश की जा रही है.
हटकर सामने आई इस बैंड की कहानी
शहर में कलाकारों की कमी नहीं है, लेकिन लड़कियों का एक ऐसा बैंड थोड़ा हटकर अपनी कहानी लेकर सामने आया है. जबलपुर जैसा शहर संगीत के मामले में देश भर में कोई खास मुकाम नहीं हासिल कर पाया है, मगर लड़कियां का यह बैंड अपना भविष्य बनाना चाह रहा हैं.