हाई कोर्ट के जस्टिस सुजॉय पॉल और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने पाया कि अभियोजन पक्ष उसके (पिता) खिलाफ ‘मूलभूत तथ्यों’ को भी स्थापित करने में असमर्थ था। कोर्ट ने यह भी महसूस किया कि वह अपीलकर्ता/आरोपी के बयान में पर्याप्त विश्वास कर सकती है कि उसे बेटी के आचरण के बारे में भौंहें चढ़ाने के लिए फंसाया गया था, जो कथित तौर पर किसी अन्य लडक़े के साथ रोमांटिक रिश्ते में थी। पिता अपनी बेटी द्वारा लगाए गए बलात्कार के आरोपों के कारण 21 मार्च 2012 से लगभग बारह साल तक जेल में रहे थे।
खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा, उनके द्वारा सुनाई गई कहानी स्वाभाविक नहीं लगती और ऐसा प्रतीत होता है कि अपीलकर्ता को इसलिए फंसाया गया क्योंकि उसने अपनी बेटी के आचरण के बारे में भौंहें चढ़ा दी थीं। अभियोजन पक्ष के अन्य गवाहों से समर्थन की कमी के साथ अभियोक्ता के बयान में विसंगतियों को पढ़ते हुए, कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने दोषसिद्धि के आक्षेपित निर्णय को पारित करने में गलती की।
बयान से खुला राज
जिरह में, अभियोक्ता ने स्वीकार किया कि वह अपने पिता द्वारा ले जाने से पहले अपने पांच भाइयों और बहनों के साथ एक ही कमरे में सोई थी। उसने यह भी स्वीकार किया कि यह संभव नहीं है कि बाकी भाई-बहन उस कमरे में कुछ होने पर ध्यान नहीं देंगे। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उसने एक अन्य लडक़े के साथ शारीरिक संबंध बनाए रखने के लिए भी स्वीकार किया, जिसके साथ याचिकाकर्ता अपने पिता के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए पुलिस स्टेशन पहुंची।
इसके अतिरिक्त, वह इस बात से भी सहमत थी कि उसके पिता ने उसके और लडक़े के बीच मौजूद रिश्ते को अस्वीकार कर दिया था। जिरह के दौरान एक जगह उसने यहां तक कह दिया कि इस लडक़े के अलावा उसने कभी किसी और के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाए।