scriptMP में हाई वोल्टेज political drama एक ही कार्यक्रम में अमित शाह और दिग्विजय सिंह | High voltage political drama in MP Amit Shah and Digvijay Singh at same event | Patrika News
जबलपुर

MP में हाई वोल्टेज political drama एक ही कार्यक्रम में अमित शाह और दिग्विजय सिंह

-आदिवासी राजा शंकरशाह-रघुनाथ शाह बलिदान दिवस कार्यक्रम बना सियासी अखाड़ा-आदिवासी वोटरो को रिझाने की कोशिश
 

जबलपुरSep 12, 2021 / 01:51 pm

Ajay Chaturvedi

दिग्विजय सिंह और अमित शाह

दिग्विजय सिंह और अमित शाह

जबलपुर. MP की सियासत गर्माने जा रही है। ये सियासी गर्मी लोकतंत्र में वोट राजनीति के तहत आने वाली है। राजनीतिक पंडित इसे हाई वोल्टेज political drama करार दे रहे हैं। वो गलत भी नहीं लगते क्योंकि एक ही कार्यक्रम में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व वरिष्ठ कांग्रेस नेता, राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह शामिल होने वाले हैं। अब इससे बड़ा सियासी भूचाल और क्या हो सकता है।
दरअसल ये दोनों ही नेता आने वाले चुनावों की तैयारी में जुटे हैं। सियासी पंडित इसे 2023 के एमपी विधानसभा और 2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी के रूप में देख रहे हैं। उनका कहना है कि आदिवासी वोटरों का अपने पाले में ध्रुवीकरण कराने के मकसद से ही कांग्रेस और भाजपा के ये शीर्ष नेता आदिवासी राजा शंकरशाह-रघुनाथ शाह बलिदान दिवस कार्यक्रम में शामिल होने आ रहे हैं। सबसे पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह इस कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे उसके बाद कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह पहुंचेंगे।
बता दें कि कांग्रेस ने 6 सितंबर से बड़वानी से आदिवासी अधिकार यात्रा की शुरूवात की है। इसका जवाब बीजेपी 18 सितंबर को जनजातीय समाज को जोड़ों अभियान से देने जा रही है। इसका आगाज केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह करने जा रहे हैं। इसी कड़ी में वे आदिवासी राजा शंकरशाह-रघुनाथ शाह बलिदान दिवस कार्यक्रम में भी शामिल होंगे। लेकिन कांग्रेस भला ऐसा कैसे होने देती सो पार्टी ने बीजेपी को पटखनी देने के लिहाज से दूर की चाल चल दी है। कांग्रेस ने इसी दिन दिग्विजय सिंह का भी कार्यक्रम तय कर दिया है। अमित शाह के बलिदान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम के बाद दिग्विजय सिंह का कार्यक्रम तय किया जा रहा है।
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ये पूरी सियासी रस्सा-कस्सी आदिवासी वोटरों को लुभाने की है। कांग्रेस 2018 के विधानसभा चुनाव में जयस की मदद से बीजेपी को नुकसान पहुंचा चुकी है। इस बार बीजेपी चौकन्नी है और 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले आदिवासी वोटरों को साधने में पूरे दमखम से जुट गई है। बता दें कि एमपी विधानसभा की कुल 230 सीटें में से 82 एससी और एसटी के लिए आरक्षित हैं। इसमें 47 सीटें अनुसूचित जनजाति की है, जबकि 31 एससी सीटें हैं, जहां आदिवासी वोटर किसी को भी पटखनी देने की अच्छी खासी कूवत रखते हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में 47 सीटों में 30 पर कांग्रेस, 16 पर बीजेपी और एक सीट पर कांग्रेस समर्थित जयस प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। आदिवासी सीटों पर पिछड़ने के चलते ही बीजेपी बहुमत के आंकड़े से 7 सीट पीछे रह गई थी। ये दीगर है कि कांग्रेसी विधायकों की बगावत के चलते ही 15 महीने बाद ही बीजेपी दोबारा सत्ता में आ गई। लेकिन आदिवासी वोटरों को साधे बिना 2023 विधानसभा चुनाव की वैतरणी पार करना आसान नहीं है।
आदिवासी राजा शंकरशाह-रघुनाथ शाह
यहां ये भी बता दें कि जबलपुर में आदिवासी वोटरों की अच्छी खासी तादाद है। शंकर शाह गोंडवाना साम्राज्य के राजा थे। उन्होंने बेटे रघुनाथशाह के साथ मिलकर अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया था। इसके बाद अंग्रेजों ने 18 सितंबर 1858 को तोप के मुंह पर बांध कर पिता-पुत्र को उड़ा दिया था। आदिवासी समाज में पिता-पुत्र को लेकर भावनात्मक जुड़ाव है। पिता-पुत्र के इस बलिदान को इतिहास में उचित स्थान न मिलने को मुद्दा बनाते हुए बीजेपी बलिदान दिवस पर गृहमंत्री अमित शाह के कार्यक्रम के माध्यम से आदिवासी समाज को साधने की जुगत में है। महाकौशल में जबलपुर के अलावा, डिंडोरी, मंडला, उमरिया, शहडोल, अनूपपुर, छिंदवाड़ा, बालाघाट आदि जिलों में आदिवासी वोटरों की काफी बड़ी तादाद है।
इस बीच कांग्रेस के पूर्व विधायक नन्हेंलाल धुर्वें ने प्रशासन को सुझाव दिया है कि आदिवासी समुदाय हर साल बलिदान दिवस मनाता है। इस कार्यक्रम में गृहमंत्री आ रहे हैं तो उनका स्वागत है, लेकिन प्रशासन ये सुनिश्चित कर लें कि कार्यक्रम में जबलपुर सहित आसपास गांवों से आने वाले आदिवासी भाई- बहनों को स्थल तक पहुंचने में कोई परेशानी न हो। उन्हें बेवजह रोका न जाए। आदिवासी समाज के लोगों के साथ धक्का-मुक्की न हो।

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