scriptकृष्ण की मायावी मूर्ति – जब गायब हो गए श्रीकृष्ण, ढूंढ़ता रह गया औरंगजेब, नहीं मिली मूर्ति | krishna janamashtami 2018 - famous krishna mandir of india - mp | Patrika News
जबलपुर

कृष्ण की मायावी मूर्ति – जब गायब हो गए श्रीकृष्ण, ढूंढ़ता रह गया औरंगजेब, नहीं मिली मूर्ति

ढूंढ़ता रह गया औरंगजेब, नहीं मिली मूर्ति

जबलपुरSep 02, 2018 / 01:32 pm

deepak deewan

janamashtami 2018

janamashtami 2018

जबलपुर। श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव जन्माष्टमी के लिए देशभर में जोरदार तैयारियों की जा रहीं है। कृष्ण मंदिर सजाए जा रहे हैं। शहर के कृष्ण मंदिरों में भी इस मौके के लिए अनूठी साज-सज्जा चल रहीं हैं। अधिकांश मंदिरों में रात के 12े बजते ही श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के धूमधड़ाके की शुरुआत हो जाएगी।

शहर में श्रीकृष्ण के अनेक मंदिर हैं। लम्हेटा का राधाकृष्ण मठ बहुत पुराना है। इस मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी में मैहर के राजा ने कराया गया। जब यह मंदिर खण्डहर हो गया तो यहां स्थापित की गई भगवान कृष्ण की मूर्ति को पास के दूसरे मंदिर में रख दिया गया। हनुमानताल मंदिर में भी श्रीकृष्ण की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। सुनरहाई और गढ़ा के राधाकृष्ण मंदिर भी करीब डेढ़ सौ साल पुराने हैं।
शहर के कृष्ण मंदिरों में गढ़ा में स्थित पचमठा मंदिर का अहम स्थान है। इस मंदिर और मंदिर में स्थापित श्रीकृष्ण की दुर्लभ मूर्ति के बारे में अनेक किस्से-कहानियां यहां बड़े चाव से कही-सुनीं जाती हैं। यहां यह भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण की यह मूर्ति ऐसी मायावी है कि जब मुगलशासक औरंगजेब ने गढ़ा में आक्रमण कर यहां लूटपाट मचाई तो तमाम कोशिश के बाद भी वह इस मूर्ति को नहीं लूट सका। मूर्ति उसके हाथ नहीं लगी।

गढ़ा में सन 1551 में इस मंदिर निर्माण के लिए पहल शुरु हुई। राधा वल्लभ संप्रदाय के चतुर्भुज और दामोदरदास ने पचमठा मंदिर का निर्माण कराया। खास बात यह है कि मंदिर में जो मूर्ति स्थापित की गई वह यमुना नदी से प्राप्त हुई थी। श्रीकृष्ण की यह प्रतिमा बहुत अद्भुत है।

गायब हो गया था पचमठा मंदिर

इतिहासकार राजकुमार गुप्ता के अनुसार 1680 के आसपास औरंगजेब की सेना ने गढ़ा पर आक्रमण कर दिया और खूब लूटपाट की तब भी यह मंदिर व श्रीकृष्ण की मूर्ति सुरक्षित बची रही। उस दौरान पचमठा मंदिर ही गायब हो गया था। बताया जाता है कि मंदिर और मूर्ति को आततायी औरंगजेब के हाथों से बचाने के लिए लोगों ने पूरे मंदिर को पेड़ों व मिट्टी से ढक दिया था। आक्रमणकारी इसे खोज ही नहीं सके थे।
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