त्रिपाठी ने दस्तावेज पेश करते हुए एक मामले के ब्योरे के जरिए कोर्ट को रैकेट की कार्यप्रणाली का उदाहरण किया। उन्होंने बताया कि बस नंबर एमपी २८ ए २४८० छिंदवाड़ा जिले में खरीद कर अनंत सिंह ठाकुर निवासी पांढुर्ना के नाम से पंजीकृत कराया गया। जबकि पांढुर्ना में इस नाम का कोई व्यक्ति नहीं रहता। करीब बीस लाख रुपए कर बिना चुकाए इस बस को महराष्ट्र के भंडारा में फर्जी दस्तावेजों के जरिए नए नंबर एमएच ३६-१२३३ पर पंजीकृत करा दिया गया। इसके बाद इस कारोबार के सरगना मंजीत ने छिंदवाड़ा आरटीओ से वाहन अपने नाम कराया व इसे सिवनी में बेच दी। वर्तमान में यह एक ही चेसिस नंबर वाली बस प्रदेश में दो अलग-अलग नंबर से पंजीकृत है।
यह है मामला
सिवनी निवासी आरटीआई कार्यकर्ता रवींद्रनाथ त्रिपाठी ने यह जनहित याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र में संगठित रूप से वाहन चोरी को अंजाम दिया जा रहा है। गोंदिया का बस संचालक मंजीत गुलाटी व दोनों राज्यों के कुछ आरटीओ इस काले कारोबार में शामिल हैं।
यह दिया तर्क
याचिकाकर्ता ने स्वयं पक्ष रखते हुए कोर्ट को बताया कि उक्त सभी प्रकरणों की अलग-अलग शिकायत की गई। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। उन्होने बताया कि जब भी एक आरटीओ के समक्ष वाहन के नये पंजीयन का आवेदन दिया जाता है तो मोटरयान अधिििनयम की धारा ४७( २ ) के तहत पुराने आरटीओ को इसकी सूचना दी जानी चाहिए। वहां से एनओसी मिलने के बाद ही नया पंजीकरण किया जाना चाहिए। लेकिन एेसा न कर छिंदवाड़ा आरटीओ की भूमिका संदेह के दायरे में है। उन्होंने मामले की जांच कराने की मांग की।