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सूरज तपने से पहले दिमाग में क्लॉटिंग, बीपी, शुगर के मरीज रहे अलर्ट

विशेषज्ञों के अनुसार अगर इस अवधि में मरीज को इलाज मिल जाता है तो उसके पूरी तरह से ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है। लेकिन ब्रेन अटैक के मामले में अगर मरीज देर से अस्पताल पहुंच रहा है तो वह जीवनभर के लिए लकवाग्रस्त हो सकता है।

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जबलपुर . मेडिकल के सुपरस्पेश्यिलिटी अस्पताल में रोज ब्रेन अटैक के 8-9 मरीज आ रहे हैं। इनमें से 2-3 मरीज ही अस्पताल समय पर पहुंच पा रहे हैं। इलाज के लिहाज से गोल्डन आवर में पहुंचने वाले मरीजों के दिमाग से खून के थक्के निकालने के लिए 4 से लेकर 24 घंटे अहम हैं। विशेषज्ञों के अनुसार अगर इस अवधि में मरीज को इलाज मिल जाता है तो उसके पूरी तरह से ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है। लेकिन ब्रेन अटैक के मामले में अगर मरीज देर से अस्पताल पहुंच रहा है तो वह जीवनभर के लिए लकवाग्रस्त हो सकता है।

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लक्षण के बगैर आया ब्रेन स्ट्रोक
54 वर्ष के एक इंजीनियर शनिवार को साइट से लौटने के बाद घर में अचानक चक्कर खाकर गिर पड़े, अस्पताल ले जाने पर पता लगा कि उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हो गया है। दिमाग में क्लाटिंग हो गई है और बांया हाथ व पैर काम नहीं कर रहा है। इसी तरह से एक 40 वर्षीय युवक को दो दिन पहले चलते हुए गिर पड़ा। परिजन मेडिकल के सुपरस्पेश्यिलिटी अस्पताल लेकर पहुंचे तो पता लगा की ब्रेन स्ट्रोक हुआ है। मरीज को स्ट्रोक के 4 घंटे के अंदर ही अस्पताल पहुंच गया था। ऐसे में सुपरस्पेश्यिलिटी अस्पताल के न्यूरोलॉजी सर्जन ने मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टमी तकनीक से ब्रेन से खून के थक्के को निकाल दिया था। ये थक्का निकलते ही युवक की जुबान काम करने लगी, हाथ-पैर फिर से काम करने लगे। कम आयु वर्ग के लोगों में भी ब्रेन स्ट्रोक की समस्या हो रही है।

ब्रेन स्ट्रोक के मामले
8-9 मरीज हर रोज आ रहे हैं सुपरस्पेश्यिलिटी अस्पताल में।
2-3 मरीज कम उम्र के।
4 से 24 घंटे गोल्डन ऑवर इलाज के लिए।
2-3 मरीज पहुंच पा रहे हैं गोल्डन ऑवर में।
ज्यादातर मरीजों के देर से अस्पताल पहुंचने के कारण जूझना पड़ रहा है लकवे से।

इनको खतरा ज्यादा

ऐसे मरीज जो नर्वस सिस्टम, हृदय रोग, बीपी, शुगर की समस्या या कोविड से पीड़ित रह चुके हैं, वे सावधान रहें। इन मरीजों को ब्रेन स्ट्रोक का खतरा ज्यादा होता है। सामान्यत: ब्रेन स्ट्रोक के मामले ठंड के दिनों में ज्यादा आते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना महामारी के बाद से लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होने के कारण ब्रेन स्ट्रोक के मामले बढ़े हैं।

सामान्यत: ये मामले ठंड के दिनों में ज्यादा आते थे। लेकिन अब गर्मी में भी ये समस्या बढ़ी है। अगर मरीज ब्रेन स्ट्रोक आने के बाद 24 घंटे में अस्पताल पहुंच रहा है तो थ्रोम्बेक्टमी तकनीक से दिमाग से सक करके खून का थक्का निकाल दिया जाता है और मरीज के पूरी तरह से ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है।

  • डॉ. निष्ठा यादव, न्यूरोलॉजी सर्जन, सुपरस्पेश्यिलिटी अस्पताल