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जबलपुर

सरकार, नेताओं, जिम्मेदारों से अपना हक मांग रहा यह शहर

जबलपुर में विकास की उड़ान के सपने अधूरे, 65 साल की यात्रा में समकक्ष रहे शहरों से पिछड़ा

जबलपुरNov 01, 2021 / 05:45 pm

shyam bihari

Jabalpur - Gondia broad gauge route

Jabalpur – Gondia broad gauge route

 

जबलपुर। जल राशि से समृद्ध, अनुकूल जलवायु और पर्याप्त संसाधनों के बावजूद जबलपुर के विकास के सपने अधूरे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार मध्यप्रदेश की स्थापना के समय यह प्राचीन नगर देश के प्रमुख नगरों में शामिल था। आयुध निर्माणियों के रूप में नगर में सुरक्षा संस्थान बड़े औद्योगिक केंद्र थे। निजी क्षेत्र में बीड़ी उद्योग, चीनी मिट्टी, कांच के बर्तन और खिलौने बनाए जाते थे। इनमें रोजगार के भरपूर अवसर थे। लेकिन, राज्य की स्थापना के बाद से अब तक 65 साल में नगर विकास की दौड़ में पिछड़ता गया। वृहद स्तर पर नए उद्योग स्थापित नहीं हुए, न ही शिक्षण संस्थानों का उन्नयन हुआ। प्रदेश स्तर के संस्थान और मुख्यालय छिनते गए। डिफेंस क्लस्टर, टेक्सटाइल पार्क, उर्वरक कारखानों, फूड प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना की घोषणाएं जमीनी स्तर पर मूर्तरूप नहीं ले सकीं और जबलपुर अपने समकक्ष रहे भोपाल, इंदौर जैसे नगरों से पिछड़ता गया। अब लोग उम्मीद कर रहे हैं कि जनप्रतिनिधि जबलपुर को विकास की ओर ले जाएंगे।

ये छिना

आंगनबाड़ी प्रशिक्षण केंद्र : आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के लिए राज्य स्तरीय आंगनबाड़ी प्रशिक्षण केंद्र-1 और 2 का संचालन मेडिकल कॉलेज के पास था। राज्यभर से कार्यकर्ता यहां प्रशिक्षण के लिए आती थीं। प्रशिक्षण केंद्र क्रमांक-2 को खरगोन शिफ्ट कर दिया गया।

रक्षा कम्पनियों का मुख्यालय नहीं : शहर की चार आयुध निर्माणियां हजारों की संख्या में लोगों को रोजगार मुहैया कराती थीं। केंद्र सरकार ने हाल ही में इन निर्माणियों को सात रक्षा कम्पनियों के हवाले कर दिया है। महत्वपूर्ण जगह होने के बावजूद एक भी कम्पनी का मुख्यालय जबलपुर को नहीं बनाया गया। निगम बनने से इनका महत्व भी कम हुआ है।

बिजली मुख्यालय का विखंडन : प्रदेश की शान राज्य विद्युत मंडल का वर्ष 2002 में विखंडन कर छह कम्पनियां बनाई गईं। इनके उपभोक्तओं को कम्पनियों से जोड़ दिया गया। इन्हें पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी, पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी कम्पनी, मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी, ट्रांसमिशन कम्पनी जनरेशन कम्पनी और ट्रेडिंग कम्पनी का नाम दिया गया है।

ये घोषणाएं नहीं हो सकीं साकार
डिफेंस क्लस्टर : रक्षा क्षेत्र मेंं नए उद्योगों की स्थापना के लिए यहां डिफेंस क्लस्टर स्थापित करने की बात होती रही है। इंदौर में आयोजित इन्वेस्टर्स समिट में इस पर सहमति बनी, लेकिन इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ। जबकि इंदौर में डिफेंस क्षेत्र की कम्पनियों के आने से उनका संचालन वहीं होने लगा।

टेक्सटाइल्स पार्क : पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने जबलपुर में इंदिरा गांधी टेक्सटाइल्स पार्क स्थापित करने की घोषणा की थी। इसके लिए भटौली में 45 हेक्टेयर जमीन चिह्नित की गई थी। यह जमीन नगर निगम के पास है। उसे एमपीआइडीसी को स्थानांतरित नहीं करने से योजना अधर में है।

उर्वरक कारखाना : जिले में वृहद स्तर पर उद्योगों की स्थापना भी नहीं हुई। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में तत्कालीन रसायन मंत्री अनंत कुमार ने यहां उर्वरक कारखाना खोलने की घोषणा की थी। सात साल पहले पनागर में जमीन भी तलाशी गई, लेकिन इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ।

इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय : प्रदेश का सबसे पुराना जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज आज भी अपडेट नहीं हो सका है। इसे आईआईटी जैसे राष्ट्रीय स्तर का संस्थान बनाने की कई बार बातें हुईं। जब बारी आई तो हक इंदौर मार गया। महाकोशल, विंध्य और बुंदेलखंड को मिलाकर जेईसी को प्रदेश का दूसरा इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय बनाने का झुनझुना थमा दिया गया।

नहीं बन सकी टाइगर सफारी : डुमना नेचर रिजर्व में मुकुंदपुर की वाइट टाइगर सफारी की तर्ज पर शहर में टाइगर सफारी का निर्माण होना था। नगर निगम प्रशासन ने लाखों रुपए खर्च कर 2011-12 में 1058 हेक्टेयर में टाइगर सफारी का मास्टर प्लान बनाया। इसके लिए डुमना को अनुकूल माना गया था। टाइगर सफारी स्थापित होने पर यहां पर्यटन को बढ़ावा मिलता। लेकिन, जनप्रतिनिधियों के आपसी टकराव के कारण प्रोजेक्ट कागजों में सिमट कर रह गया।

ये होना चाहिए

न्यायिक ट्रिब्यूनल, आयोग व मंडल हो स्थापित : राज्य की स्थापना के बाद संस्कारधानी को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की मुख्यपीठ तो मिल गई। लेकिन, न्यायिक ट्रिब्यूनल, आयोग व मंडलों की स्थापना का प्रदेश बनने के 65 साल बाद भी इंतजार है। सुप्रीम कोर्ट ने 1987 में निर्देश दिए थे कि जहां संबंधित राज्य के हाईकोर्ट की मुख्यपीठ हो, वहां ट्रिब्यूनल, आयोग व मंडलों की स्थापना की जानी चाहिए। इसके बावजूद 34 वर्ष से जबलपुर उपेक्षा का दंश भोगने को विवश है। यह मामला मप्र हाईकोर्ट में भी लम्बित है।

10 साल में एमयू नहीं बना सका पहचान : मप्र आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय की स्थापना के 10 साल बाद भी विश्वविद्यालय अपनी पहचान नहीं बना सका है। आज भी बेहतर प्रशासन और छवि के लिए संस्थान जूझ रहा है। प्रदेश स्तरीय विवि मेडिकल कॉलेज के एक छोटे से भवन में सिमटा हुआ है।

मेट्रो ट्रेन के प्रोजेक्ट में शुरू हो काम : जबलपुर में मेट्रो ट्रेन के लिए वर्ष 2017 में फिजिबिलटी सर्वे कराया जा चुका है। मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के माध्यम से इसका परीक्षण कराया जाना था। लेकिन इस दिशा में आगे काम नहीं हुआ। जबकि भोपाल में मेट्रो रेल प्रोजेक्ट पर काम जारी है। महानगर का स्वरूप ले रहे जबलपुर की भविष्य की सार्वजनिक यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए मेट्रो ट्रेन का शुरू होना आवश्यक है।

प्रोसेसिंग यूनिट नहीं हुई स्थापित : एशिया की सर्वश्रेष्ठ उपजाऊ जमीन में से समृद्ध जबलपुर में उपजे बासमती चावल से सऊदी अरब की बिरयानी का स्वाद बढ़ता है। यहां के मटर की देशभर में मांग है। यहीं उपजा सिंघाड़ा उपवास में देश समेत दुनियाभर में व्रत के दौरान फलाहार के रूप में ताकत देता है। लेकिन इन स्थानीय उपज की प्रोसेसिंग दूसरे राज्यों में होती है। इसे देखते हुए केंद्र से लेकर राज्य के बड़े नेता यहां फू ड प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने की बात कहते रहे हैं, लेकिन अब तक इस दिशा में ज्यादा काम नहीं हुआ।

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