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जगदलपुर

भतीजे को शहर लाने वाले डीईओ चाचा, एक बीमार पैरालाइज्ड बच्चे को उसकी मां से अलग करने पर आमादा

बस्तर डीईओ (Education Officer) मानवता (Humanity)के नाते फैसला बदलने को तैयार नहीं, कलक्टर के आदेश (Collector Order) के बावजूद ज्वाईन नहीं करने पर दी विभागीय कार्रवाई की धमकी

जगदलपुरJul 29, 2019 / 03:03 pm

Badal Dewangan

body paralyzed

भतीजे को शहर लाने वाले डीईओ चाचा, एक बीमार पैरालाइज्ड बच्चे को उसकी मां से अलग करने पर आमादा

japanese encephalitis) हुआ और उसकी पूरी बॉडी पैरालाइज्ड हो गई। बच्चे का चार महीने तक एम्स दिल्ली में इलाज चला। इसके बाद डॉक्टरों ने कहा कि बच्चे को पूरी निगरानी में बच्चों के बीच रखने की जरूरत है। ताकि उसकी इच्छा शक्ति बढ़े और उसकी बॉडी मूवमेंट करने लगे। इसके लिए उसे स्कूल भेजा जाए। श्रद्धा यादव ने बेटे का दाखिला कोसा सेंटर स्कूल में ही करवा दिया। ऐसा उन्होंने इसलिए किया ताकि बच्चा उनके करीब रहे। साथ ही स्कूल से लगे फिजियोथैरिपी सेंटर में बच्चे का उपचार भी होता रहे। इस स्थिति के बीच उनका संलग्नीकरण खत्म कर दिया गया, डीईओ ने उन्हें बास्तानार जाने कहा।

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डीईओ ने मामले में कलक्टर का आदेश भी रखा ताक पर
शिक्षिका ने डीईओ को अपने बच्चे की स्थिति के बारे में बताया इसके बावजूद डीईओ ने मानवता के नाते भी अपना फैसला नहीं बदला। इसके बाद शिक्षिका अपनी फरियाद लेकर कलक्टर अय्याज तंबोली के पास पहुंचीं। कलक्टर के निर्देश पर बास्तानार के बीईओ के नेतृत्व में एक समिति बनाकर शिक्षिका के कथन की जांच हुई। जांच सही पाई गई। इसके बाद कलक्टर ने शिक्षिका को लिखकर दिया कि आप जगदलपुर में यथावत रह सकती हैं। कलक्टर का लिखा आदेश जब डीईओ को दिखाया गया तो उन्होंने इसे भी ताक पर रखते हुए बास्तानार में ज्वाइनिंग नहीं देने पर विभागीय कार्रवाई करने की धमकी दे डाली। अब शिक्षिका के सामने विकट समस्या खड़ी हो गई है। एक ओर उनका बीमार बच्चा है तो वहीं दूसरी ओर उनकी नौकरी जिसके पैसों से बेटे का महंगा इलाज हो पा रहा है। अगर वे बास्तानार जाती भी हैं तो वहां बच्चे को वह सुविधा नहीं मिल पाएगी जो जगदलपुर में उपलब्ध है। एक बेटे की मां ने पत्रिका के माध्यम से गुहार लगाते हुए कहा है कि कम से कम उनके मामले में तो डीईओ मानवता का परिचय दें।

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बच्चे की हालत ऐसी कि उसे बास्तानार नहीं ले जा सकते
तीसरी कक्षा में अध्ययनरत 12 वर्षीय शिक्षिका श्रद्धा यादव के बच्चे का पूरा शरीर पैरालाइज्ड है। वह व्हीलचेयर पर ही स्कूल जाता है। उसकी तबियत ऐसी है कि कभी भी अटैक आ सकता है। ऐसी स्थिति में उसे ३० मिनट के अंदर वेंटिलेटर पर रखना होता है। साथ ही उसका हर दिन फिजियो भी किया जाता है। ऐसी स्थिति में बास्तानार के तिरथुम जैसे अंदरूनी इलाके के स्कूल में शिक्षिका को भेजा जाना मानवीय दृष्टिकोण से गलत है।

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