बीजापुर और सुकमा की सरहद पर मौजूद इस गांव को बस्तर का सबसे खतरनाक गांव माना जाता रहा है। इस गांव में बैठकर ही हिड़मा पूरे बस्तर में खूनी खेल खेलता रहा है। कई बड़ी घटनाओं की योजनाएं इसी गांव में बनाई गईं। जब भी कभी फोर्स इस गांव के आसपास पहुंची उसे बड़ा नुकसान झेलना पड़ा। अब सुरक्षा बलों के जवान ग्रामीणों का विश्वास जीतने में जुटे हैं।
बाल संघम से सीसी मेंबर तक बना : नक्सलियों के बाल संघम संगठन में सोलह साल की उम्र में हिड़मा की भर्ती हुई थी। आज वह नक्सलियों की सबसे ताकतवर सेंट्रल कमेटी (सीसी) का मेंबर बन चुका है। इस कमेटी में सदस्य बनने वाला वह बस्तर का इकलौता नक्सली है। सीसी मेंबर में आंध्र और झारखंड-बिहार के नक्सलियों का ही वर्चस्व रहा है। 2010 में ताड़मेटला में 76 जवानों की हत्या के बाद झीरम घाटी के हमले की साजिश भी हिडमा ने ही रची की। 2017 में सुकमा के बुर्कापाल में सेंट्रल रिजर्व फोर्स पर हुए हमले का मास्टरमाइंड भी वही था।
पूवर्ती में कैंप लगाना पुलिस के लिए इतना चुनौतीपूर्ण रहा कि 3000 जवानों के यहां पहुंचने के बाद दो दिन तक नक्सलियों से मुठभेड़ होती रही। जवानों पर एक हजार से अधिक बीजीएल हमले हुए।
हिड़मा को नक्सल संगठन में भर्ती करने वाले पूर्व नक्सली बदरना बताते हैं कि फिलहाल वे हिड़मा से नहीं मिले हैं, लेकिन जहां तक जानकारी है वह ङ्क्षजदा है। काफी साल पहले उन्होंने उसे देखा था। वह तब भी वैसा ही था जैसा भर्ती किया था। उस वक्त 30-31 साल का रहा होगा। अब तो वह 40-41 साल का होगा। हालांकि उसके ङ्क्षजदा होने को लेकर काफी भ्रम है।
बस्तर आइजी पी. सुंदरराज बताते हैं कि पूवर्ती में पुलिस की पहुंच कोई रातों रात नहीं हुई है। इसके पीछे लंबी प्लाङ्क्षनग और लंबी लड़ाई है। नक्सलगढ़ में बीतों सालों से लगातार कैंपों को खोलने पर ध्यान दिया जा रहा था। कैंप वाले इलाकों से जागरूकता के बाद लोग सरकारी सिस्टम से जुडऩे लगे व नक्सलियों का इलाका सिमटता गया।