बिजली गुल होने की समस्या लगातार बनी
मेडिकल कॉलेज में बिजली मेंटेनेंस के लिए हर साल टेंडर निकाला जाता है। इसमें पंजीकृत व योग्य फर्म आवेदन करते हैं। टेंडर की सभी शर्तों केा मानने वाली सक्षम फर्म को ही टेंडर दिया जाता है। मेडिकल कालेज ने जिस फ र्म को यह काम दिया था उनका कार्यकाल जून 2019 में ही खत्म हो गया है। इसके बाद भी मेडिकल कॉलेज प्रबंधन नया टेंडर जारी करने की बजाए उसी पूराने फर्म से काम ले रहा है। फर्म के काम करने के बावजूद मेडिकल कालेज में बिजली गुल होने की समस्या लगातार बनी हुई है।
हर महीने साढ़े 8 लाख रुपए का भुगतान
मेडिकल कॉलेज में बिजली मेंटेनेंस के लिए जिस फर्म को टेंडर दिया गया है उसे हर महीने करीब साढ़े 8 लाख रुपए का भुगतान किया जा रहा है। इसमें 132 केव्हीं सब स्टेशन के मेंटेनेंस के लिए हर महीने साढ़े 5 लाख रुपए और मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में बिजली मेंटेनेंस के लिए तीन लाख रुपए का भुगतान किया जा रहा है। इसके बाद भी हॉस्पिटल में बिजली व्यवस्था चौपट रहती है। कई बार पूरे मेडिकल कॉलेज में ब्लैक आउट की स्थिति भी हो चुकी है। जिससे मरीजों को काफी परेशनी हुई है।
बिना इंजीनियर के टेक्नीशियन के भरोसे चल रहा काम
मेडिकल कॉलेज में बिजली मेंटेनेंस के लिए हर महीने साढ़े आठ लाख रुपए का भुगतान किया जाता है। वहीं मेंटेनेंस के लिए सिर्फ 5 से 7 टेक्नीशियन रखे गए हैं। जिनका पीएफ भी नहीं कांटा जाता है। वहीं नियम के अनुसार करीब 40 टेक्नीशियन और कम से कम 5 इंजीनियर होने चाहिए। जबकि मेडिकल कॉलेज में बिजली मेंटेनेंस के लिए इस फर्म का एक भी इंजीनियर पदस्थ नहीं है। ऐसे में मेंटेनेंस के लिए इतना रुपए खर्च कैसे हो रहा है।