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जगदलपुर

ये मुर्गा नहीं है साधारण, एक विशेष पूजा के बाद मुर्गा अपने मालिक की विपत्ति अपने सर लेकर, करता है उनकी रक्षा

आदिवासियों (Tribal accreditation ) की ये परंपरा कई सालों से चली आ रही है जिसमें एक मुर्गे (Cock) को देवी के पास लेजाकर उसके नाखून (Nail) की बलि दी जाती है, उसके बाद ये मुर्गा अपने मालिक की सारी बलाएं अपने सर ले लेता है।
 

जगदलपुरJul 25, 2019 / 01:27 pm

Badal Dewangan

Tribal accreditation

ये मुर्गा नहीं है साधारण, एक विशेष पूजा के बाद मुर्गा अपने मालिक की विपत्ति अपने सर लेकर, करता है उनकी रक्षा

किरंदुल. क्या आपने कभी सुना है ठोको मुर्गा के बारे में और उसकी खासियत। आदिवासियों के जीवन मे इसका विशेष महत्व होता है। दंतेवाड़ा जिले में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग अपने देवी देवताओं, संस्कृति और अनेक परंपरा को संजोए हुए हैं। ऐसे ही ठोको मुर्गा जिसको गोंडी में ‘निलपिकीटोर’ बोला जाता है इस मुर्गे को गांव में कोई भी नही खाता।

जब मुर्गा छोटा होता है उस समय जो परिवार उसको पाल रहा होता है वो देवी के पास मुर्गे को लेजाकर विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करके उस मुर्गे के एक पैर के नाखून को काट देते है। फिर देवी के नाम पर इसे गांव में ही छोड़ देते है। सुदरू राम कुंजाम बताते है कि ठोको मुर्गे को देवी के नाम तीन साल के लिए वह परिवार छोड़ देता है। उनका मानना है कि इससे उस परिवार में कोई भी विपत्ति आती है तो वो मुर्गा अपने ऊपर ले लेता है और अपनी जान दे देता है। इस प्रकार उस परिवार की रक्षा करता है। आदिवासियों का मानना है कि अगर गांव में कोई उसको मार कर खाया तो उसकी मौत हो जाएगी। मुर्गे का देवी के नाम पर नाखून काट देने के कारण उसको ठोको मुर्गा बोलते है।

3 साल के बाद छोडऩे वाला परिवार खाता है
कुंजाम ने बताया कि जब मुर्गों की बीमारी गांव में फैलती है उस वक्त भी सब मुर्गा मुर्गी मर जाते हैं पर ठोको मुर्गे को कुछ नही होता। इसकी आयु तीन वर्ष की होती है और जब ये तीन वर्ष का हो जाता है तो जिस परिवार ने इसको दैवी के नाम पर छोड़ा होता है वही इस ठोको मुर्गे को खाता है। आपको बता दें की आदिवसियों में बहुत सी खास बातें होती हैं। वो बिना पूजा के आम नही खाते, महुआ, टोरा, इमली तक कि पूजा किये बिना उसको नही तोड़ते। धान लगाने से लेकर काटने और खाने के सामान को देवी देवता को अर्पण कर फिर सेवन करते है। सही मायनों में बोला जाए तो ये अपनी परंपरा को बचाए हुए हैं।

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