इसके साथ ही अस्पताल प्रशासन ने देखा कि जब नि:शुल्क भोजन मिलता है। तब अस्पताल के कई कर्मचारी भी इसमें शामिल हो जाते है। कर्मचारी या तो खुद भोजन ले लेते थे या फिर दूसरे किसी भी तीमारदार को भोजन के पैकेट लेने के लिए भेज देते थे। लेकिन अब अस्पताल परिसर में भोजन बांटने की प्रक्रिया बंद होने के बाद अस्पताल परिसर के बाहर ही भामाशाह या संस्था भोजन पैकेट बांटते है। ऐसे में अब न तो कर्मचारी भोजन लेने जा सकते है और न किसी को भोजन लेने के लिए भेज सकते है। क्योंकि अस्पताल के कंट्रोल रूम में सीसीटीवी फुटेज में अब दिख जाएगा कि ड्रेस में कौनसा कर्मचारी बाहर भोजन पैकेट लेने गया है। ऐसे में अब कोई कर्मचारी अस्पताल के बाहर जाकर लाइन में लगकर भोजन पैकेट लेने की आफत नहीं झेलता है।
वारदातें भी हो गई कम…
अस्पताल प्रशासन का मानना है कि पहले से अब वारदातें अब कम हो गई है। पहले कभी मोबाइल चोरी, कभी बच्चा चोरी तो कभी अन्य वारदातें होती थी। ऐसा नहीं है कि वारदातें अब बंद हो गई है। चोरी व अन्य वारदातें अब भी होती है। लेकिन पहले से बहुत कम हो गई है।
संस्थाएं कराती है सिफारिश, लेकिन एंट्री बंद..
एसएमएस अस्पताल परिसर में भोजन पैकेट या फल आदि बांटने पर प्रतिबंद लगने के बाद अब संस्थाओं की ओर से हर दिन सिफारिश कराई जाती है। यह सिफारिश नेता व अन्य करते है। लेकिन अस्पताल प्रशासन का साफ कहना है कि अब सिफारिश का कोई मतलब नहीं है। अब सिर्फ सरकार के आदेश पर ही अस्पताल परिसर में भोजन पैकेट या फल आदि बांटे जा सकते है। इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है।
इसलिए लिया गया था निर्णय..
एसएमएस अस्पताल में सालाना करोड़ों रुपए साफ सफाई पर खर्च होता है। लेकिन इसके बाद भी अस्पताल में चूहों की तादाद कम नहीं हुई। जब अस्पताल प्रशासन ने इसकी स्टडी की तो सामने आया कि अस्पताल परिसर में भोजन बांटने वाले चले जाते है। इसके बाद लोग जहां तहां खाकर भोजन छोड देते है। जिससे चूहों की संख्या बढ़ गई। लेकिन अब धीरे धीरे स्थिति सुधर रही है।
इनका कहना है..
यह निर्णय लेना सख्त था, लेकिन लिया गया। इसके बाद हालात में सुधार हुआ है। सिफारिशें आती है, लेकिन अब सरकार के आदेश होने पर ही एंट्री दी जा सकती है।
डॉ प्रदीप शर्मा
अतिरिक्त अधीक्षक, एसएमएस अस्पताल