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जयपुर

बचपन पर भारी पिता की मौत- 10 साल की उम्र में जूते पॉलिश कर परिवार को चला रहा ये मासूम

पिता की मौत और फिर मां की बीमारी के बाद घर की जिम्मेदारी का बीड़ा मासूम ने उठा लिया। जिम्मेदारी को एक चुनौती समझ मासूम जूते पॉलिश के काम में लग गया।

जयपुरOct 05, 2017 / 08:58 pm

पुनीत कुमार

boy shoes polish
बचपन का जीवन हर बच्चे के लिए यादगार लम्हा होता है। इस समय उम्र के बच्चे हर फिक्र से अंजान अपने दोस्तों के साथ खेलकूद और माता-पिता के लाड- दुलार का पूरा आंदन लेते हुए दिखते हैं। लेकिन यहां एक 10 साल का मासूम अपने परिवार की जिम्मेदारियों को अपने नाजुक कंधों पर उठा हुए है। आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन राजस्थान के भरतपुर में स्थित वी नारायण इलाके का ये बच्चा हर दिन अपने परिवार के लिए यहां के महिला अस्पताल के नजदीक लोगों के जूते पॉलिश करने के लिए मजबूर है।
पिता के बाद मां भी हो गई बीमार…

दरअसल, भरतपुर स्थित वी नारायण इलाके में रहने वाले रोहित के पिता का निधन हो चुका है। जिसके बाद अब वह अपने 5 सदस्यों वाले परिवार में इकलौता कमाने वाला है। किसी बीमारी के कारण रोहित के पिता की मौत कुछ महीने पहले हो गई थी। फिर उसके बाद रोहित की मां मजदूरी करने के लिए विवश हो गई। तो वहीं सभी भाई-बहनों को पालने के लिए वो लोगों के घरों में जाकर साफ-सफाई का काम करने लगी। इसी दौरान वह धीरे-धीरे बीमार रहने लगी। और उसके बाद सही समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण वो ज्यादा कमजोर हो गई। जिस कारण रोहित की मां ने काम पर जाना भी बंद कर दिया।
इसलिए पढ़ाई छोड़ करने लगा जूते पॉलिश…

तो वहीं पिता की मौत और फिर मां की बीमारी के बाद घर की जिम्मेदारी का बीड़ा मासूम ने उठा लिया। जिम्मेदारी को एक चुनौती समझ मासूम रोहित लोगों के जूते पॉलिश के काम में लग गया। जबकि इसके लिए उसने अपनी पढ़ाई-लिखाई को भी छोड़ दिया और अपने नाजुक कंधों पर पूरे परिवार का बोझ उठा लिया। वह हरदिन अस्पताल के गेट के बाहर लोगों के जूते पॉलिश कर कुछ 50 से 100 रुपए तक की कमाई कर लेता है, जिससे उसके घर का खर्च चलता है।
अस्पताल के बाहर लगता है दुकान…

अगर बात रोहित के घर के सदस्यों की करें तो रोहित से बड़ी एक बहन है, जिसकी उम्र लगभग 13 साल है, जिसके बाद खुद रोहित 10 साल का है। एक बहन 9 साल की है, और सबसे छोटा भाई जयंत जो कक्षा एक में पढ़ता है। और फिर उसकी एक बीमार मां जिसके भरण-पोषण का जिम्मा मासूम के ऊपर है। इतना ही अपनी जिम्मेदारियों को बोझ नहीं मानकर रोहित घर का सारा काम निपटा कर सड़क के किनारे अपनी दुकान लगाने रोज सुहब निकल पड़ता है।

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