अफसर को बाड़मेर और दलाल को जैसलमेर से पकडा, पांच लाख बरामद
दरअसल सरकार ने जमीनों की देखरेख और उनको सही हाथों में बिना परेशानी सौपने के लिए कॉलोनाइजेशन डिपार्टमेंट को यह जिम्मेदारी दी थी। डिपार्टमेंट में वर्तमान में प्रेमाराम परमार आरएएस लगे हुए थे। इनके पास ही यह जिम्मेदारी थी। लेकिन प्रेमाराम ने दलाल नजीर खान के साथ मिलकर बडा खेल कर दिया। दलाल नजीर खान अफसर प्रेमाराम की मदद से इन जमीनों को विस्थापितों से औने—पोने दामों में खरीद लेते और बाद में जमीनों को बड़े दामों में बेचते। इसके लिए जिस सरकारी कागजी कार्रवाई की जरुरत होती वह कार्रवाई अफसर प्रेमाराम करते और जिन बोगस ग्राहकों की जरुरत होती उनका इंतजाम नजीर खान करता। इस तरह से बाद मे जमीनों को बेचकर दोनो कमीशन बांटते थे। प्रेमाराम 31 अक्टूबर को रिटायर हुए। इससे पहले उन्होनें बडी संख्या में इस तरह की जमीनों फाइलें निपटाई थीं। इन फाइलों के निस्तारण के बाद गलत तरीके से जमीनें बेची जा रही थी और लगभग हर दूसरे दिन लाखों रुपए कमीशन आ रहा था। देर रात बाडमेर में नजीर खान ने प्रेमाराम को उसके आवास पर पांच लाख रुपए दिए थे। यह रुपए एसीबी ने बरामद कर लिए और प्रमाराम को पकड लिया। उधर नजीर खान जो जैसेलमेर भाग गया था उसे भी सवेरे पकड लिया गया। अब दोनो के कच्चे चिट्ठे खोले जा रहे हैं।
एसीबी को कुछ दिन पहले इस मामले की जानकारी मिली तो एसीबी ने अफसर को ट्रेप करने के लिए जाल बिछाया और देर रात उसे जाल में फंसा भी लिया। लेकिन उसके बाद अफसर प्रेमाराम के जयपुर, जोधपुर और बाड़मेर स्थित मकान की तलाशी ली गई तो वहां से जमीन, मकान, दुकान, सोना—चांदी, कैश, महंगी शराब, महंगे उपहार और भी बहुत कुछ मिला। जयपुर स्थित मकान से करीब आठ लाख रुपए, जोधपुर से करीब साढ़े सात लाख रुपए कैश, पंद्रह लाख के गहने, जालोर में पत्नी के नाम से खेत खलिहान, बड़ी कम्पनियों के शेयर, परिवार के अन्य सदस्यों के नाम से एक करोड़ रुपए से ज्यादा के मकान, फ्लेट, जोधपुर स्थित मकान से बेहद महंगी और बहुत सारी शराब भी मिली है। इसके लिए बोरनाड़ा थाना जोधपुर में रिपोर्ट भी दर्ज कराई गई है और आबकारी विभाग को भी लिखा गया है।
कौन हैं ये विस्थापित जिन पर सरकार ने मेहरबानी बरती और अफसरों ने लूटा
दरअसल भूतपूर्व सैनिकों, शहीद सैनिकों के परिवारों और पौंग बांध के विस्थापितों के लिए सरकार ने जमीनों का अलॉटमेंट किया। ये जमीनें, बॉडर इलाकों में जैसलमेर, बीकानेर, बाडमेर और अन्य जगहों पर दी गई हैं। इन सरकारी जमीनों को सही तरीके से सही हाथों तक पहंचाने के लिए कॉलोनाईजेशन डिपार्टमेंट को जिम्मेदारी दी गई। इस विभाग में एडिशनल कमिश्नर प्रेमाराम को जिम्मेदार अफसर तैनात किया गया था। लेकिन नजीर खां के साथ मिलकर प्रेमाराम ने विस्थापितों को परेशान किया। जमीनों के अलॉटमेंट नहीं किए। उनको बंजर और खराब जमीनें दी गई। सरकारी कार्रवाई के जरिए परेशान किया गया। इस पर बहुत से विस्थापितों ने अपनी दलाल नजीर खां के जरिए कौड़ियों के दाम बेच दी। उसके बाद इन जमीनों के फिर से कागजात बनाकर इन जमीनों को उंचे खरीदारों को बेचा गया। एसीबी अफसरों का कहना है कि पूरा खेल करोड़ों रुपयों का है। फिलहाल मामले की जांच की जा रही हैं
दरअसल कुछ बरस पहले पौंग डैम हिमाचल के कांगड़ा जिले में बना है। पौंग बांध के कारण राजस्थान, पंजाब और हरियाणा को लाभ मिला। इससे राजस्थान की बंजर भूमि पर भी हरियाली आई लेकिन इसके लिए अपनी जमीन गंवाने वाले लोगों को न्याय नहीं मिला। पौंग बांध निर्माण के लिए राज्य में करीब 16 हजार 352 लोग विस्थापित हुए थे। सालों से यह लोग विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। अभी तक राजस्थान सरकार इनमें से 9196 विस्थापितों को ही वहां पर जमीन दे सकी है। इन लोगों को राजस्थान सरकार ने बॉर्डर एरिया पर जमीन दी थी, जहां पर न तो पानी की व्यवस्था थी और न ही वहां पर खेती ही हो सकती है। ऐसे में कई लोग उस जमीन को बेचकर आ चुके हैं, वहीं कइयों ने वह जमीन ली ही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट तक ने इस मामले में दखल दी है। राजस्थान सरकार जल्द से जल्द सभी विस्थापितों को जमीन देने की तैयारी भी कर रही है।