सिंघवी ने यह भी कहा कि सरकार निजी अस्पतालों को इंजेक्शन बेचने का पक्का बिल भी नहीं दे रही है। इंजेक्शन पर छपे अधिकतम खुदरा मूल्य को मिटाकर भी सीएमएचओ कार्यालय से इंजेक्शन बेचे जा रहे हैं। आखिर ऐसी क्या मजबूरी है जिसके चलते अधिकतम दाम को छुपाना पड़ रहा है ? सवाल यह भी खड़ा होता है कि जब सरकार ने जीवन रक्षक इंजेक्शन रेमडेसिविर का अधिकतम मूल्य रूपए 1350 तय किया है तो क्या निजी अस्पताल सरकार से मिलने वाले इंजेक्शन को रुपए 1350 में ही मरीज़ों को दे रहे हैं ?
सरकार ने खरीदने और बेचने के लिए 1350 रुपए मूल्य निर्धारित कर दिए हैं तो फिर अस्पतालों को बिल नहीं देने के पीछे क्या कारण है ? सिंघवी ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि सरकार स्पष्ट करे कि चिकित्सा विभाग ने कितने दाम पर कितने इंजेक्शन खरीदे हैं और कितने-कितने इंजेक्शन किस-किस अस्पताल को अभी बेचे गए हैं ? सरकार को निजी अस्पतालों से यह भी पूछना चाहिए कि सरकार से कम दाम पर खरीदे गए इंजेक्शन मरीज़ को कितने में बेचे गए हैं ? जीवन रक्षक इंजेक्शन की कालाबाज़ारी की ख़बरें सचेत करती है कि खरीद-फरोख्त में पारदर्शिता और सावधानी बरतना आवश्यक है।