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जयपुर

त्रिपुरा का होजागिरी नृत्य, लय-ताल-संतुलन में झलकती उमंग और श्रद्धा

चावल साफ करने का बैलिंग (सूप), कोला (धातु का घड़ा), कुपी (दीपक), बोडो (बोतल), मैरांग (थाली) और रूमाल। ये छह आइटम हर नर्तकी के पास और फिर मैलुमा के पूजन का तरीका।

जयपुरOct 14, 2019 / 05:21 pm

Kamlesh Sharma

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जयपुर। चावल साफ करने का बैलिंग (सूप), कोला (धातु का घड़ा), कुपी (दीपक), बोडो (बोतल), मैरांग (थाली) और रूमाल। ये छह आइटम हर नर्तकी के पास और फिर मैलुमा के पूजन का तरीका। इनका अपनी खास वेशभूषा में लय और ताल में खूबसूरत प्रदर्शन से बना है पूर्वात्तर राज्यों का लोक नृत्य होजागिरी।
देश के पूर्वोत्तर राज्यों त्रिपुरा, मिजोरम, असम और मणिपुर में बारिश के बाद जब फसल कट जाती है तो अन्न और जल देने के लिए माता मैलुमा का आभार जताने को होजागिरी उत्सव मनाते हैं रियांग यानी ब्रू आदिवासी। इस होजागिरी उत्सव में अपनी उमंग, मां के प्रति अपनी श्रद्धा और परंपरा निभाने की ललक का मुख्य माध्यम बनता है होजागिरी नृत्य। दशहरा के तीन दिन बाद यह उत्सव शुरू होता है और शरद पूर्णिमा की रात मैलुमा के पूजन के बाद प्रतिपदा की सुबह संपन्न होता है। रियांग समुदाय के कुछ समूह यह नृत्योत्सव तीन दिन, तो कुछ दो दिन आयोजित करते हैं।
सांसें थमाने वाला नृत्य-
इस नृत्य में छह से आठ युवतियां सिर पर बोतल और दीपक, दोनों हाथों में थाली व दीपक तथा मुंह में रूमाल ले घडे़ पर खड़ी होकर जब नाचती हैं तो दर्शकों की सांसें थम-सी जाती हैं। इन नृत्यांगनाओं का इतने आइटम्स संभालते हुए घडे़ पर खडे़ होकर बैलेंस (संतुलन) बनाना वाकई नृत्य साधनाका ही परिणाम है। करीब आधे घंटे के इस नृत्य में कौशल और पूर्वाभ्यास में किया गया परिश्रम साफ झलकता है। इस डांस की खूबी यह भी है कि इसमें नर्तकियों के कमर के नीचे का हिस्सा ही चलता है।
पुरुष गाते और बजाते हैं-
जवाहर कला केंद्र में इस लोकनृत्य की प्रस्तुति के लिए आए समूह के प्रभारी एवन्लल पेका बताते हैं, ’’होजागिरी नृत्य की खासियत यह है कि इसमें नृत्य सिर्फ नवयुवतियां और महिलाएं ही करती हैं। पुरुष नृत्य का गीत गाते हुए उसे संगीतबद्ध करते हैं।’’ इसमें मुख्यरूप से खम और सुमुई (बांसुरी) और ढोलक का प्रयोग होता है। सुमुई बांसुरी का ही दूसरा नाम है।

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