इस नृत्य में छह से आठ युवतियां सिर पर बोतल और दीपक, दोनों हाथों में थाली व दीपक तथा मुंह में रूमाल ले घडे़ पर खड़ी होकर जब नाचती हैं तो दर्शकों की सांसें थम-सी जाती हैं। इन नृत्यांगनाओं का इतने आइटम्स संभालते हुए घडे़ पर खडे़ होकर बैलेंस (संतुलन) बनाना वाकई नृत्य साधनाका ही परिणाम है। करीब आधे घंटे के इस नृत्य में कौशल और पूर्वाभ्यास में किया गया परिश्रम साफ झलकता है। इस डांस की खूबी यह भी है कि इसमें नर्तकियों के कमर के नीचे का हिस्सा ही चलता है।
जवाहर कला केंद्र में इस लोकनृत्य की प्रस्तुति के लिए आए समूह के प्रभारी एवन्लल पेका बताते हैं, ’’होजागिरी नृत्य की खासियत यह है कि इसमें नृत्य सिर्फ नवयुवतियां और महिलाएं ही करती हैं। पुरुष नृत्य का गीत गाते हुए उसे संगीतबद्ध करते हैं।’’ इसमें मुख्यरूप से खम और सुमुई (बांसुरी) और ढोलक का प्रयोग होता है। सुमुई बांसुरी का ही दूसरा नाम है।