प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 नवबर, 2016 को फैसला लेने के दौरान दावा किया था कि इससे कालेधन, नकली मुद्रा, आतंकवाद में इस्तेमाल होने वाली मुद्रा और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण होगा। पायलट ने कहा कि अब आरबीआइ की ओर से पेश आंकड़ों से स्पष्ट हुआ है कि सभी दावे खोखले साबित हुए हैं। सरकार की इस अदूरदर्शी नीति व हठधर्मिता के कारण देश की अर्थव्यवस्था को लगभग 1.5 प्रतिशत का नुकसान हुआ है।
सरकार ने दावा किया था कि उस समय जितनी मुद्रा चलन में थी, उसमें से 3 से 4 लाख करोड़ रुपए कालाधन है, जो नोटबंदी के कारण बाहर आ जाएगा, लेकिन 99.3 प्रतिशत पुराने नोट बैंकों में जमा हो चुके हैं, जो सरकार के इस दावे को गलत साबित करता है। आतंकवाद पर लगाम लगने के स्थान पर आतंकवादी घटनाओं में इजाफा हुआ है। जहां 2016 में 155 आतंकी घटनाएं हुई थी। 2018 में बढक़र 191 हो गई हैं।
15 करोड़ श्रमिकों को रोजगार के लाले
मात्र 10,720 करोड़ रुपए वापस नहीं लौटे हैं, जिसके बारे में भी यह माना जा रहा है कि उक्त राशि भूटान व नेपाल जैसे देशों में होने की वजह से अब तक जमा नहीं हो पाई है। नोटबंदी से 15 करोड़ श्रमिकों की आजीविका प्रभावित हुई। लघु व मध्यम उद्योग पूरी तरह चौपट हो गए। नोटों के लिए कतार में लगने से 100 से ज्यादा लोगों की मौतें हुई हैं। नए नोटों की छपाई में खर्चे में पिछले वर्ष की तुलना में 133 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।