वहीं शुक्र अपनी नीच राशि कन्या और सूर्य नीच राशि तुला में रहेगा। चारों ग्रहों का यह संयोग दिवाली के दिन 300 साल में पहली बार बनेगा। ऐसे में आगामी समय में देश को कई सार्थक परिणाम मिलेंगे। साथ ही देश विदेश में भारत की साख बढ़ेगी। वर्ष 1913 के बाद बृहस्पति, शनि स्वराशि और सूर्य नीच राशि में दिवाली पर एक साथ रहे थे। ऐसा ही संयोग इस बार बन रहा है। सभी राशि के जातकों को तेल का दीपदान करने से आरोग्य में वृद्धि होगी।
अमावस्या की शुरुआत शनिवार दोपहर 2.18 बजे से होगी और पूरी रात अमावस्या रहेगी। शास्त्रानुसार कार्तिक अमावस्या को प्रदोषकाल युक्त अमावस्या में लक्ष्मी पूजन किया जाता है। लक्ष्मी पूजन प्रदोष युक्त अमावस्या को स्थिर लग्न में करना बेहतर माना गया है। गृहस्थजन को शाम को प्रदोषकाल युक्त वृषभ लग्न में महालक्ष्मी पूजन करना चाहिए, जो इस बार सायं 5.49 से 6.02 बजे तक रहेगा। पं. पुरुषोत्तम गौड़ ने बताया कि लक्ष्मी पूजन प्रदोष युक्त अमावस्या को स्थिर लग्न और स्थिर नवांश में सभी राशि के जातकों के लिए सर्वश्रेष्ठ रहता है।
पूजन के मुहूर्त:
प्रदोष काल: शाम 5.33 से रात 8.12 बजे तक
वृष लग्न: शाम 5.37 से रात 7.34 बजे तक
सिंह लग्न: मध्य रात्रि 12.07 से 2.23 बजे तक
चौघडि़ए मुहूर्त:
लाभ: शाम 5.33 से 7.13 बजे तक
शुभ, अमृत और चर: रात 8.52 से 1.51 बजे तक
सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त:
सायं 5.49 से 6.02 बजे तक। इसमें प्रदोष काल, वृष लग्न, कुंभ का स्थिर नवांश भी रहेगा। इसलिए यह सबसे सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त।
दिन के मुहूर्त (व्यापारिक और औद्योगिक प्रतिष्ठान):
दोपहर 2.18 बजे बाद महालक्ष्मी पूजन करना स्र्वश्रेष्ठ रहेगा। इसमें लाभ, अमृत का चौघडिय़ा दोपहर बाद 2.18 से 4.12 बजे तक रहेगा।
(ज्योतिषाचार्य पं. दामोदर प्रसाद शर्मा के मुताबिक)