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VIDEO: खुद से हुआ नहीं अब फ्रांस की लेंगे मदद, जयपुर मेट्रो फेज-2 का तीसरी बार खिंचेगा खाका

जयपुर मेट्रो ने नकारी अपनी डीपीआर, फ्रेंच कंपनी को सौंपा नए सिरे से स्टडी का जिम्मा

जयपुरDec 01, 2017 / 12:00 pm

Nakul Devarshi

jaipur metro
जयपुर।

जयपुर मेट्रो रेल परियोजना के फेज—2 की बनी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट पर अब खुद सरकार ने ही सवाल उठा दिए हैं। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में साल 2012 में बनी डीपीआर को वर्तमान भाजपा सरकार ने 2014 में संशोधित करवाया। लेकिन अब सरकार ने एक बार से 2014 में बनी डीपीआर की समीक्षा करवाने का फैसला लिया है। जयपुर मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (जेएमआरसी) ने मेट्रो फेज—2 की डीपीआर की समीक्षा और स्टडी का जिम्मा फ्रांस की कंपनी एजिस रेल को सौंपा है। अब फ्रेंच कंपनी मेट्रो फेज-2 की डीपीआर में खामियां तलाशकर इसका समाधान सरकार को बताएगी।
ये करेगी फ्रेंच कंपनी
मेट्रो प्रशासन से मिली जानकारी के मुताबिक एजिस रेल डिटेल सर्वे करवाएगी। कंपनी ट्रेफिक सर्वे, जंक्शन सर्वे, यात्री सर्वे, हाउसहोल्ड सर्वे और लोगों का वास्तविक फीडबैक जानने के लिए रोड साइड इंटरव्यू करेगी। अब ये कंपनी सीतापुरा से अम्बावाड़ी तक करीबन 24 किलोमीटर लम्बे मेट्रो रूट की समीक्षा कर उसमें खामियां तलाशेगी, जिसके कारण निवेशक प्रोजेक्ट में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
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जेएमआरसी अधिकारियों का कहना है कि फेज-2 की डीपीआर को रिव्यू करने का मकसद प्रोजेक्ट की लागत में कमी करना भी है। फ्रांस की कंपनी के एक्सपर्ट दुनिया में मेट्रो ट्रेन से जुड़ी नई तकनीक से लागत कम करने के उपाय भी तलाशेंगे।
दूसरी डीपीआर में लागत 3,717 करोड़ बढ़ी
जयपुर मेट्रो फेज-2 की पहली डीपीआर 2012 में बनी थी। इसमें सीतापुरा से अम्बावाड़ी तक करीब 24 किलोमीटर लम्बे रूट पर मेट्रो चलाने का खर्च 6,583 करोड़ रुपए अनुमानित था। जो 2014 की संशोधित डीपीआर में बढ़कर 10,300 करोड़ रुपए हो गया। संशोधित डीपीआर में एक और बदलाव ये आया कि इसमें अंडरग्राउंड स्टेशनों की संख्या 5 से बढ़कर 7 हो गई। जबकि एलिवेटेड स्टेशन की संख्या 15 से घटकर 13 हो गई।
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ये देश आए और चले गए
राज्य सरकार ने फेज—2 में निवेश तलाशने के लिए जुलाई 2014 में डीपीआर में संशोधन किया। इसके बाद 2015-16 में 5 देशों की कंपनियां जयपुर मेट्रो का दौरा करने आईं। इनमें चीन, अमरीका, सिंगापुर, कोरिया और मलेशिया की निवेशक कंपनियों के प्रतिनिधि मंडल शामिल थे। सिंगापुर की टीम तो दो बार फेज—2 रूट का दौरा करके गई। लेकिन एक ही साल में पांचों कंपनियों ने एक—एक करके निवेश से हाथ खींच लिए। इससे मेट्रो का फेज—2 अटक गया, जो अब तक अटका है।

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