इस मौके गुप्ता ने कहा कि गांधी के योगदान को आने वाली पीढिय़ां याद रखें, इसके लिए प्रत्येक जिले में गांधी विलेज विकसित किया जाएगा। गांधी पर हुए शोध दर्शाते हैं कि गांधी अपने आप में एक संस्था थे। कार्यक्रम में एचसीएम रीपा के न्यूज लेटर एवं ब्रोशर का विमोचन भी किया गया।
चर्चा में पद्श्री डॉ. पुष्पेश पंत ने लेखक प्रमोद कपूर से संवाद करते हुए कहा कि यह पुस्तक में शब्दों एवं चित्रों का जबरदस्त संकलन है, जो हर बार कुछ नई चीज देता है। कार्यक्रम के अंत में एसोसिएशन की साहित्यिक सचिव मुग्धा सिन्हा ने कहा कि 150 वर्ष के बाद भी गांधी को नए-नए दृष्टिकोण से देखते हैं तथा पढ़कर या बोलकर भी गांधी को नहीं समेटा जा सकता।
प्रमोद कपूर कहते हैं, राजीव ने खेल खेल में आगंतुकों के लाए फूल गांधी के पैरों में बांधने शुरू कर दिए। गांधी ने मुस्करा कर राजीव के कान खींचे और कहा ऎसा मत करो बेटे। सिर्फ मरे हुए लोगों के पैर में फूल बांधे जाते हैं। शायद गांधी को अपनी मौत का आभास हो चला था और दो दिन बाद उनकी हत्या कर दी गई। प्रमोद कपूर की किताब का सबसे मार्मिक पक्ष है, जब वो गांधी और उनके सबसे बड़े बेटे हरिलाल के संबंधों का जिक्र करते हैं। प्रमोद कहते हैं, एक बार जब हरिलाल को पता चला कि गांधी और कस्तूरबा ट्रेन से मध्य प्रदेश के कटनी स्टेशन से गुजरने वाले हैं तो वो अपने आप को रोक नहीं पाए।
वहां हर कोई महात्मा गांधी की जय के नारे लगा रहा था। हरिलाल ने जोर से कस्तूरबा मां की जय का नारा लगाया। बा ने नारा लगाने वाले की तरफ देखा तो वहाँ हरिलाल खड़े हुए थे। उन्होंने उन्हें अपने पास बुलाया। हरिलाल ने अपने थैले से एक संतरा निकाल कर कस्तूरबा को देते हुए कहा कि मैं ये तुम्हारे लिए लाया हूं। सुनते ही गांधी बोले, मेरे लिए क्या लाए हो। हरिलाल ने जवाब दिया, ये सिर्फ बा के लिए है। इतने में ट्रेन चलने लगी और कस्तूरबा ने हरिलाल के मुंह से सुना बा सिर्फ तुम ही ये संतरा खाओगी…मेरे पिता नहीं।
लेखक कहते है कि बहुत कम लोगों को पता है कि गांधी दोनों हाथों से उतनी ही सफाई के साथ लिख सकते थे। 1909 में इंग्लैंड से दक्षिण अफ्रीका लौटते हुए उन्होंने नौ दिन में अपनी 271 पेज की पहली किताब हिंद स्वराज खत्म की थी। जब उनका दाहिना हाथ थक गया तो उन्होंने करीब साठ पन्ने अपने बाएं हाथ से लिखे।
आईएएस एसोसिएशन की साहित्यिक सचिव मुग्धा सिन्हा ने कहा कि 150 वर्ष के बाद भी गांधी को नए-नए दृष्टिकोण से देखते है तथा पढ़कर या बोलकर भी गांधी को नहीं समेटा जा सकता। एसोसिएशन अपने कार्यक्रमों के द्वारा समाज में समरसता, सद्भाव एवं देश के नव-निर्माण में योगदान देने वाले ऎसे अनेक महापुरूषों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के पहलुओं को समाज के समक्ष रखता है ताकि समाज एवं देश उनके बताये रास्ते पर चल सके।